SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : ६१८ ] सत्तमो महाहियारो । ४२९ घड्ढोए प्रभावादो । एदेहि गच्छेहि गुणिज्जमाण-मज्झिम-धणाणि चउदि - रूवमादि कादण दुगुण-दुगुण-कमेण गच्छति जाब सयंभूरमणसमुद्दो ति।। भयं-अब इन गच्छोंसे पृथक्-पृथक् गुण्यमान राशियोंकी प्ररूपणा की जाती है । इनमेंसे तृतीय समुद्र में दो सौ अठासी और प्रागेके द्वीपमें इससे दुगुनी गुण्यमान राशि है, इसप्रकार स्वयंभूरमरा समुद्र पर्यन्त गुण्यमान राशियाँ दुगुने दुगुने क्रमसे चली जाती हैं। अब दो सौ अठासीसे गुण्यमान राशियोंका अपवर्तन करके लब्ध राशिसे अपने-अपने गच्छोंको गुरणा करके सब गच्छोंकी दो सौ अठासी ही गुण्यमान राशि करना चाहिए । इसप्रकार करनेपर सब गच्छ परस्परको अपेक्षा चौगुने क्रमसे अवस्थित हो जाते हैं । इस समय चारको आदि करके चार-चार उत्तर क्रमसे गत संकलनाके लाते समय पूर्वोक्त गच्छोंसे सांप्रतिक गच्छ एक कम होते हैं, क्योंकि दुगुने हुए स्थानमें चार रूपोंकी वृद्धिका अभाव है। इन गच्छोंसे गुण्यमान मध्यम धन चौंसठ रूपको प्रादि करके स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त दुगुने-दुगुने होते गये हैं। विशेषार्थ-पद या स्थानको गच्छ कहते हैं। जिस द्वीप या समुद्र में चन्द्र-सूर्य के जितने वलय होते हैं, वहीं उनकी गच्छ-राशि होती है । प्रादि, मुख या प्रभव ये एकार्थ याची हैं । यहाँ मुख (प्रत्येक द्वीप या समुद्र के प्रथम वलयके चन्द्र प्रमाण) को ही गुण्यमान राशि कहा गया है। जैसे तृतीय ( पुष्करवर ) समुद्र में ३२ बलय हैं अतः वहाँका गच्छ ३२ है । इस समुद्र के प्रथम वलयमें २८८ चन्द्र हैं अतः यहाँ गुण्यमान राशि २८८ है। इसीप्रकार चतुर्थ द्वीपमें वलय ६४ और प्रथमवलपमें चन्द्र प्रमाण ५७६ है अतः यहाँका गच्छ ६४ और गुण्यमान राशि ५७६ है। तृतीय समुद्रके गच्छ और गुण्यमान राशिसे चतुर्थ द्वीपकी गच्छ राशि एवं गुण्यमान राशिका प्रमाण दूना है। यही क्रम अन्तिम समुद्र पर्यन्त जानना चाहिए । अब आचार्य सभी गच्छोंको परस्परको अपेक्षासे चतुर्गुण क्रमसे स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए सभी गुण्यमान राशियोंको २८८ से ही अपवर्तित कर जो लब्ध प्राप्त हो उससे अपने-अपने गच्छोंको गुणित करने पर सब गच्छ परस्परकी अपेक्षा चौगुने क्रमसे अवस्थित हो जाते हैं। जैसे चतुर्थ द्वीपकी गुण्यमान राशि ५७६ है । इसे २८८ से अपवर्तित करनेपर (%)=२ लब्ध प्राप्त हुआ । इससे इसी द्वीपके गच्छको गुणित करनेपर ( ६४४२)=१२८ प्राप्त हुए जो तृतीय समुद्रके गच्छसे चौगुना (३२४४=१२८ ) है। इसीप्रकार अन्त-पर्यन्त जानना चाहिए । यथा [ तालिका अगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy