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४३० ]
समुद्र एवं द्वीप
३ रा
पुष्करवर स०
४था वारुणिवर द्वीप
५
६ ठा
७ वीं क्षीरवर समुद्र
वारुणि० समुद्र
क्षीरवर द्वीप
तिलोय पणती
गुण्यमान राशि : भाजक - राशि=
२०६÷२६६
५७६÷२०६
११५२÷२६६
२३०४÷२८८=
४६०६÷२०६=
लब्ध
१
२
४
८
१६
[ गाथा : ६१८
परस्पर में लब्धराशि Xगच्छ चौगुना गच्छ
=
१×३२=
२४६४
[ सारणी अगले पृष्ठ पर देखिए ]
४×१२८=
८x२५६=
१६४५१२=
३२
१२८
५१२
२०४५
=१९२
पदों में होनेवाली समान वृद्धि या हानिको प्रचय कहते हैं । यथा- - तृतीय समुद्रमें ३२ वलय हैं और उसके प्रथम वलय में २८८ चंद्र हैं । चय वृद्धि द्वारा दूसरे वलयमें २९२, तीसरे में २६६ इत्यादि, वृद्धि होते-होते अन्तिम वलय में चन्द्र संख्या ५७२ प्राप्त होगी और चतुर्थ द्वीपके प्रथम वलय में यह संख्या (२८८ की दूनी ) ५७६ हो जायगी । किन्तु इससमय यहाँ गच्छ ३२ न होकर ३१ ही होगा। क्योंकि दुगुने हुए स्थानमें प्रचय वृद्धिका प्रभाव है ।
मध्यमवन – संकलन सम्बन्धी गच्छकी मध्य संख्यापर वृद्धिका जो प्रमाण आता है वह मध्यमधन कहलाता है । गच्छोंके उत्तरोत्तर दुमने रूपसे बढ़ते जानेपर यह मध्यमधन भी द्विगुणित होता जाता है । यथा
तृतीय समुद्रका गच्छ ३२ होनेसे उसका मध्यमधन सोलहवें स्थान ( पद ) पर रहता है क्योंकि प्रथम में कोई वृद्धि नहीं है, अतएव ३१ पद बचते हैं। इनमें १६ व मध्य पद हो जाने से उसकी वृद्धि ( १६x४ ) = ६४ होती है । जिसकी सारणी इसप्रकार है