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गाथा ६१८ ]
सत्तगी महाहवारी
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तिलोयपण्णत्ती गाथा १ १ १३१ तथा त्रिलोकसार गाथा १०८ की टीकानुसार जगच्छ ेणी ( ७ राजू ) के अर्थ च्छेदोंकी संख्या इसप्रकार है
पल्य के अर्ध० x साधिक पल्के अर्धच्छेद x पल्के अर्धच्छेद x ३ ।
प्रसंख्यात
जगच्छ्रेणी ७ राजू लम्बी है जिसमें समस्त द्वीप- समुद्रोंको अपने गर्भ में धारण करने वाले तिर्यगुलोकका आयाम एक राजू है । ७ राजूका उत्तरोत्तर तीन बार अर्ध-अर्ध करनेपर एक राजू प्राप्त होता है अतः जगच्छ्रे लोके उपर्युक्त अर्धच्छेदों में से ये ३ अर्धच्छेद घटा देनेपर एक रज्जुके अच्छेदों का प्रमाण इसप्रकार प्राप्त होता है
X ( पयके अर्धच्छेद ) x ३ } – ३ |
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पल्क अर्धच्छेद असंख्यात
द्वीप- समुद्रोंकी संख्या का प्रमाण
एक राजू के उपर्युक्त अर्धच्छेदों के प्रमाणमेंसे जम्बूद्वीपके अर्धच्छेद ( अर्थात् संख्यात अधिक पल्य के अर्धच्छेदों का वर्ग ) कम कर देनेपर द्वीप समुद्रोंकी संख्या प्राप्त हो जाती है । यथा-
२
प० ० असं ०
- X १० छे० * x ३ - ३ ) - संख्यात ( अर्थात् ६ ) अधिक प० छे० ' = द्वीप और सागरोंका
(
प्रमाण
गच्छका प्रमारण
उपर्युक्त संख्यावाले द्वीप- समुद्रों में ज्योतिष्कोंका विन्यास ज्ञातकर उन ज्योतिषी देवोंकी संख्या प्राप्त की जाती है, इसलिए जम्बुद्वीप के अर्धच्छेदों में ६ श्रच्छेद मिलानेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसे रज्जु अर्धच्छेदों में से घटा देनेपर जो शेष रहता है वही प्रमाण ज्योतिषी बिम्बोंकी संख्या निकालने हेतु गच्छका प्रमाण कहलाता है ।
तृतीय समुद्रको आदि लेकर स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त गच्छ-प्रमाण
एतो चंवाण सपरिवाराणमाणयण विहाणं वत्तइस्साम । तं जहा - जंबू - दीवावि-पंच-बीब-समुद्दे मोत्तूण तविय समुद्दादि काढूण जाव-सयंमूरमण - समुद्दो ति एवाण - माणयण किरियं ताव उच्चयदे - तदिय- समुद्दम्मि गच्छो बत्तीस, चस्थ दोवे गच्छो चउसट्टी, उवरिम-समुद्दे गच्छो अट्ठावीसुत्तर सयं । एवं बुगुण-बुगु - कमेरण गच्छा गच्छति जाव सयंभू रमणसमुहो ति ।
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