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________________ ४२६ ] तिलोय पणती 200000000 विशेष द्रष्टव्य donacooooooooo [ गाया । ६१८ सपरिवार चन्द्रोंके प्राप्त करनेकी प्रक्रियाका दिग्दर्शन असंख्यात द्वीप समुद्र में चन्द्रादि ज्योतिष बिम्ब राशियोंको प्राप्त करने हेतु सर्व प्रथम असंख्त द्वीप समुद्रोंकी संख्या निकाली जाती है। यह संख्या गच्छका प्रमाण प्राप्त करने में कारण भूत है और गच्छ चन्द्रादिक राशियोंका प्रमाण निकालने के लिए उपयोगी है । असंख्यात द्वीप समुद्रों की संख्याका प्रमाण द्वीप समुद्रोंकी संख्या निकालने लिए रज्जुको अर्थ है। इसका कारण यह है कि ६ अधिक जम्बूद्वीप के अर्धच्छेदोंसे होन रज्जुके अर्धच्छेदोंका जितना प्रमाण है उतना ही प्रमाण द्वीप समुद्रोंका है । ५ राजू के अच्छे निकालने की प्रक्रिया -- सुमेरु पर्वत के मध्य से प्रारम्भकर स्वयंभूरमण समुद्र के एक पार्श्वभाग पर्यन्तका क्षेत्र अर्धराजू प्रमाण है, इसलिए राजूका प्रथमबार आधा करनेपर प्रथम अर्धच्छेद जम्बुद्वीप के मध्य ( केन्द्र ) में मेरु पर पड़ता है । इस अर्ध राजूका भी अर्धभाग अर्थात् दूसरी बार आधा किया हुआ राजू स्वयंभूरमण द्वीपकी परिधिसे ७५००० योजन श्रागे जाकर स्वयंभूरमण समुद्र में पड़ता है। तीसरी बार आधा किये हुए राजूका प्रमाण स्वयंभूरमण द्वीप में अभ्यन्तर परिधिसे मेरुकी दिशा में कुछ विशेष भागे जाकर प्राप्त होता है । इसप्रकार उत्तरोत्तर अर्धच्छेद क्रमशः मेरुकी ओर द्वीप समुद्रों में अर्ध- अर्धरूपसे पतित होता हुआ लवरणसमुद्र पर्यन्त पहुँचता है। जहां राजूके दो अर्धच्छेद पड़ते हैं । ( देखिए त्रिलोकसार गा० ३५६ ) जम्बूद्वीपकी वेदीसे मे के मध्य पर्यन्त ५०००० योजन और उसी वेदोसे लवणसमुद्र में द्वितीय अर्धच्छेद तक ५० हजार योजन अर्थात् जम्बूद्वीपसे अभ्यन्तरकी ओर के ५० हजार योजन और बाह्यके ५० हजार योजन ये दोनों मिलकर १ लाख योजन होते हैं जिनको उत्तरोत्तर १७ बार अ- अर्ध करनेके पश्चात् एक योजन अवशेष रहता है। इस १ योजनके ७६८००० अंगुल होते हैं । जिन्हें उत्तरोत्तर १७ बार अर्ध-अर्ध करनेपर एक अंगुल प्राप्त होता है। एक अंगुलके अर्धच्छेद पल्य के श्रच्छेदों के वर्गके बराबर होते हैं। इसप्रकार जम्बूद्वीप के अर्धच्छेद (१७+१६+१) ३७ अधिक पत्यके अर्धच्छेदोंके वर्ग अथवा संख्यात अधिक पथके श्रच्छेदों के वर्ग के सदृश होते हैं । H ( त्रिलोकसार गाथा ६८ )
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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