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________________ गाथा : ६१८] सत्तमो महाहियारो [ ४२५ विशेषार्थ-स्वयंभूरमणसमुद्रका बाह्य सूचीव्यास एक राजू अर्थात् ज है। इसमें १ लाख जोड़कर ३ से गुणित करनेपर वहाँकी स्थूल परिधिका प्रमाण होता है । यथा ३ (ज+ १००००० ) ! असंख्यात द्वीप समुद्रोंमें चन्द्र-सूर्योंके समस्त बलयोंका प्रमाण ( -२३) है और इन समस्त बलयोंका ई भाग अर्थात् ( - २३.) प्रमाण स्वयंभूरमण समुद्रके वलयोंका है । यहाँके चन्द्र-सूर्योमें प्रत्येकका प्रमाण २ ( R+ राख यहाँके अन्तिम बलयमें चन्द्र-सूर्योका प्रमाण प्राप्त करनेका सूत्र है-आदि + { वलयसंख्या -१) चय। अर्थात् २ (२८७.७..+ २४ ) + (२८०....-२३-१ ) ४४ या २ ( २६ लाख + २४ ) + (२ लाख २५ ) ४४ था २ ( २६ लाख + २७ ) + ( २५ लाख ५० ) या (१४...+ २७ ) + (N...-५०) या ,१३, यह अन्तिम वलयके समस्त चन्द्र-सूर्योका प्रत्येकका प्रमाण है । इस प्रमाण का स्वयंभूरमणसमुद्रकी स्थूल परिधिमें भाग देकर 1 यो० घटा देनेसे अन्तिम वलयमें चन्द्र-सूर्योके अन्तरका प्रमाण प्राप्त हो जाता है । यथा ३ (जु + १००००० ) – १०४ या ३ ज - १४:०० -- यो. १३ जे १४००००० =MAY-४६१५२ योजन अन्तराल प्रमाण है । इसप्रकार अचर ज्योतिर्गणकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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