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गाथा : ६१८ ]
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[१३८००००० "T४४"
अन्तर है और ५७५०००
प्रमाण है।
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सत्तमी महाहियारो
[ ४२३
५७५००० } - ५६=९५८२४ योजन प्रथम वलय में चन्द्रले चन्द्रका = ९५५२५३ योजन बहाँके एक सूर्यसे
दूसरे सूर्यका अन्तर
मानुषोत्तर के आगे द्वितीय वलय स्थित चन्द्र-सूर्यक
अन्तरका प्रमाण
विदिय - बलए चंवाइच्चाणमंतरं श्रट्ट े ताल सहस्स छ सय छावाला जोयणाणि पुणो इगि-सय-तील जुदारणं दोण्णि सहस्सा फलाओ होदि बोणि-सय-सत्तायण्ण हवे गम्भ हिय दोणि- सहस्सेण हरिवमेत्तं होदि । तं चेदं । ४८६४६ | ३६ | एवं नेदव्वं जाव सयंभूरमणसमुद्दति ।
२२५७
अर्थ - द्वितीय वलय में चन्द्र-सूर्योका अन्तर अड़तालीस हजार छह सौ छयालीस योजन और दो हजार दो सौ सत्तावनसे भाजित दो हजार एक सौ तीस कला अधिक है । वह यह है४८६४६३३३३ । इसप्रकार स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ - प्रत्येक वलय में चन्द्र-सूर्योका वृद्धिचय ४४ है, अतः द्वितीय वलय में इनका प्रमाण ( १४६ + १४८ ) = २९६ है । प्रथम वलयसे यह दूसरा वलय एक लाख योजन आगे जाकर है। वहीं प्रत्येक पार्श्वभागका वलय व्यास एक-एक लाख योजन है अतः दूसरे वलयका सूची- व्यास ( ४६ लाख + २ लाख ) - ४६ लाख योजन है । पूर्वोक्त नियमानुसार यहां चन्द्र-सूर्यके अन्तरका प्रमाण इसप्रकार है
४८०००००x३ -1500000) — 10x="52" १०६७६६१५९ - ४८६४६३५० योजन ।
स्वयंभूरमणसमुद्र के प्रथम वलय में चन्द्र-सूर्य के अन्तरका प्रमाण
तत्थ अंतिम वियपं वत्तइस्सामो सयंभूरमण समुहस्स पढम बलए एक्केषकचंदा इकचाणमंतरं तेत्तीस - सहस्स-ति-सय- इगिलीस जोयरगारिण सा पुण पण्णा रस-जुदेवकसयं हारो तेसीदि-जुवेदक-सय-रूवमेतेण भहियं होदि, पुणो रूवस्स असंखेज्जभागेणम्भहियं होदि । तं चेदं ३३३३१ | भा ३३ | एवं सयंभू र मरणसमुदस्स बिदिय पह प्यहुदि - बुचरिम-पहतं विसेसाहिय परुवेण जाणिय वत्तव्यं ।
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अर्थ -- उनमें से अन्तिम विकल्प कहते हैं- स्वयंभूरमण समुद्र के प्रथम वलय में प्रत्येक चन्द्र-सूर्यका अन्तर तैंतीस हजार तीन सौ इकतीस योजन और एक सो तेरासीसे भाजित एक सौ पन्द्रह भाग अधिक तथा असंख्यातसे भाजित एक रूप अधिक है । वह यह है - ३३३३११२५ ।