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गाथा । ६१८ ] सत्तमो महाहियारो
[ ४२१ प्रत्येक द्वीप-समुद्र के प्रथम-वलयके चन्द्र-सूर्य प्राप्त
करनेकी विधिपोक्खरवरदोषव-पहवि जाय सयभरमणसमुद्दो त्ति पोक्क-दीवस्स वा उहिस्स वा पढम-वलयसंठिव-चंदाइचारणं प्राणयण-हेदु इमा सुस-गाहापोक्खरवरुवाह-पहुदि, उपरिम-दीग्रोवहीण विषखंभं ।
लक्ख-हिवं णव-गुरिणवं, सग-सग-दीउबहि-पढम-बलय-फलं ॥६१८।।
प्रथं-पुष्करार्धद्वीपसे लेकर स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त प्रत्येक द्वीप अथवा समुदके प्रथम-वलयमें स्थित चन्द्र-सूर्योका प्रमाण लानेके लिए यह गाथा-सूत्र है
पुष्करपर समुद्र आदि उपरिम द्वीप समुद्रोंके विस्तारमें एक लाखका भाग देकर जो लब्ध प्राप्त हो उसे नौसे गुणा करनेपर अपने-अपने द्वीप-समुद्रोंके प्रथम-बलयमें स्थित चन्द्र-सूर्योका प्रमाण प्राप्त होता है ।।६१८॥
विशेषार्थ-उपर्युक्त नियमानुसार तीसरे समुद्र, भतर्थ होत गतं मनयंभूरसारण समुद्र के प्रथम यलय स्थित चन्द्र-सूर्योका प्रमाण इसप्रकार है
(१) तृतीय पुष्करवरसमुद्रका विस्तार ३२ लाख योजन है। इसके प्रथम वलयमें चन्द्रसूर्योका प्रमाण (23)२८८ - २८८ है।
(२) वारुणीवर नामक चतुर्थ द्वीपका विस्तार ६४ लाख योजन है। इसके प्रथम बलयमें चन्द्र-सूर्योका प्रमाण. ( 1 )= ५७६ - ५७६ है ।
(३) स्वयंभूरमण समुद्रका विस्तार-जगच्छु णी +७५००० है। इसके प्रथम वलयमें चन्द्र-सूर्योका पृथक्-पृथक् प्रमाण [ जगमणी + ७५००० ]x
९ जगच्छ्रणी ७५०००४९-९ जगच्छणी + २७ है। २८००००० १००००० २८00000४ ९'
प्रत्येक वलयमें चयका प्रमाणविचयं पुण पडिवलयं पडि पत्तेक्कं चउत्तर - कमेण गच्छह जाब सयंभुरमणसमुद्दति । णवरि दोवस्स बा उहिस्स वा दुगुण-जाव-पढम-वलय-ढाणं मोत्तूण सम्वत्प चउरत्तर-कम वत्तव्यं ।