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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ६१४-६१६ पंचाणउदि-सहस्सा, पंच-सया पंचतीस-अहिया । खेतम्मि माणुसाणं, चेटुते खोल - ताराओ ॥६१४॥
९५५३५ । अर्थ--मनुष्य क्षेत्रमें पंचानब हजार पांच सौ पैंतीस स्थिर तारा स्थित हैं ।।६१४॥
मनुष्यलोकके ज्योतिषीदेवोंका एकत्रित प्रमाण
द्वीप-समुद्रों |
चन्द्र ।
तारा
नक्षत्र
नाम
अस्थिर तारा स्थिर तारा
जम्बूद्वीप
१७६
१३३९५०कोडाकोड़ो
का
३५२
११२
लवणसमुद्र धातकीखण्ड
३३६
८०३७००
१०१०
१०५६ ३६९६ ६३३६
कालोदसमुद्र पृष्कराधंद्वीप
११७६
४११२०
२८१२९५० , ४८२२२०० ॥
२
२०१६
५३२३०
योग
१३२ | १३२ | ११६१६
३६९६ / ८८४०७०० कोड़ा- ९५५३५
ग्रहों की संचरण विधि-- सव्वे ससिणो सूरा, णक्खत्ताणि गहा य ताराणि ।
णिय-णिय-पह-पणिधीसु पंतीए चरंति णभखंडे ॥६१५॥ अर्य-चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह और तारा, ये सब अपने-अपने पथोंकी प्रणिधियोंके नभखण्डोंपर पंक्तिरूपसे संचार करते हैं ।।६१५॥
ज्योतिष देवोंकी मेरु प्रदक्षिणाका निरूपणसम्वे कुर्णति मेरु, पदाहिणं जंबुदीव-जोदि-गरणा । अद्ध - पमाणा धावसंडे तह पोक्खरद्धम्मि ॥६१६।।
एवं चर-गिहाणं चारो समत्तो।