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________________ गाथा । ६१०-६१३ ] सत्तमो महाहियारो [ ४१७ एक्कत्ताल-सहस्सा, बीसत्तरमिगि-सयं च कालोदे । तेवण्ण-सहस्सा बे - सयाणि तीसंप पुक्खरखम्मि ॥६१०॥ ४११२० । ५३२३० । अर्थ कालोद समुद्र में इकतालीस हजार एक सौ बीस और पुष्करार्धद्वीप में तिरेपन हजार दो सौ तोस स्थिर तारे हैं ।।६१०॥ मनुष्यलोक स्थित सूर्य-चन्द्रोंका विभागमाणसखेते सतिणो, छासट्ठी होति एक्क-पासम्मि । दो - पासेसदुगुणा, तेत्तियमेत्ताणि मत्तंडा ॥६११॥ ६६ । १३२ । अर्थ-मनुष्य लोक के भीतर एक पाव भागमें छयासठ और दोनों पार्श्वभागोंमें इससे दूने चन्द्र तथा इतने प्रमाण ही सूर्य हैं ॥६११।। निरोपाई- बूड परेकाग्रीग पर्णन कमशः २+४+ १२+४२ +७२= ( १३२) चन्द्र एवं इतने ही सूर्य हैं। इनका अर्धभाग अर्थात् ( १३२+२= ) ६६ चन्द्र तथा ६६ सूर्य एक पार्वभागमें और इतने ही दूसरे पार्श्वभागमें संचार करते हैं । मनुष्यलोक स्थित सर्व ग्रह, नक्षत्र और अस्थिर-स्थिर तारामोंका प्रमाणएक्करस-सहस्साणि, होति गहा सोलसुत्तरा छ-सया। रिक्खा तिष्णि सहस्सा, छस्सय-छण्णउदि-अदिरित्ता ।।६१२।। ११६१६ १ ३६६६ । प्रर्ष-मनुष्य लोकमें ग्यारह हजार छह सौ सोलह ( ११६१६ ) ग्रह और तीन हजार छह सौ छयानबे ( ३६९६ ) नक्षत्र हैं ॥६१२।। अट्ठासीवी लक्खा, चालीस-सहस्स-सग-सयाणि पि । होति हु माणुसोत्ते, ताराणं कोडकोडीभो ॥६१३।। ८८४०७००००००००००००००००। अर्थ-मनुष्य क्षेत्रमें अठासी लाख चालीस हजार सात सौ कोडाकोड़ी अस्थिर तारे हैं ।।६१३॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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