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________________ ४१४ ] तिलोयपण्णसी [ गाथा । ५९८-६०१ लवणसमुद्रादिमें सूर्योकी शेष प्ररूपणासेसामो वण्णणामो, जंबूदीवम्मि जाओ दुमणीणं । तामो लवणे धादइसंडे कालोव - पुक्खर सु॥५६८।। भूस्यस्यणा । अर्थ-जम्बूद्वीप स्थित सूर्योंका जो शेष वर्णन है, वही लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोद और पुष्करार्धके सूर्योका भी समझना चाहिए ।।५९८।। इसप्रकार सूर्य-प्ररूपणा समाप्त हुई। लवणसमुद्रादिमें ग्रह संख्याबाबण्णा तिष्णि-सया, होति गहाणं च लवणजलाहिम्मि । छप्पण्णा अम्भाहियं, सहस्समेक्कं च घावईसंडे ॥५६॥ ३५२ । १०५६ । तिणि सहस्सा छस्सय, छण्णउदी होंति कालउबहिम्मि । छत्तोस्सभहियाणि, तेसट्ठि - सयाणि पुक्खरद्धम्मि ॥६००॥ ३६९६ । ६३३६ । एवं महारण पहवणा समत्ता। अर्थ-लवणसमुद्र में तीन सौ बाधन और धातकीखण्डमें एक हजार छप्पन ग्रह है। कालोदधिमें तीन हजार छह सौ छधान और पुष्करार्धद्वीपमें छह हजार तीन सौ छत्तीस ग्रह हैं ।।५९९-६०७॥ विशेषार्थ-एक चन्द्र सम्बन्धी ८८ ग्रह हैं, अतः लवणसमुद्र में (८४४ )-३५२, धा० खण्डमें ( ८८x१२) = १०५६, कालोदधिमें (८८४४२) = ३६६६ और पुष्करार्धद्वीपमें ( १८४७२ )=६३३६ ग्रह हैं । इसप्रकार ग्रहोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई। लवरणसमुद्रादिमें नक्षत्र संख्यालवरणम्मि बारसुत्तर-सयमेत्ताणि हवंति रिक्वाणि । छत्तीयॊह अहिया, तिष्णि - सया पावईसंडे ॥६०१॥ ११२ । ३३६ ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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