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तिलोयपण्णसी
[ गाथा । ५९८-६०१ लवणसमुद्रादिमें सूर्योकी शेष प्ररूपणासेसामो वण्णणामो, जंबूदीवम्मि जाओ दुमणीणं । तामो लवणे धादइसंडे कालोव - पुक्खर सु॥५६८।।
भूस्यस्यणा । अर्थ-जम्बूद्वीप स्थित सूर्योंका जो शेष वर्णन है, वही लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोद और पुष्करार्धके सूर्योका भी समझना चाहिए ।।५९८।।
इसप्रकार सूर्य-प्ररूपणा समाप्त हुई।
लवणसमुद्रादिमें ग्रह संख्याबाबण्णा तिष्णि-सया, होति गहाणं च लवणजलाहिम्मि । छप्पण्णा अम्भाहियं, सहस्समेक्कं च घावईसंडे ॥५६॥
३५२ । १०५६ । तिणि सहस्सा छस्सय, छण्णउदी होंति कालउबहिम्मि । छत्तोस्सभहियाणि, तेसट्ठि - सयाणि पुक्खरद्धम्मि ॥६००॥
३६९६ । ६३३६ ।
एवं महारण पहवणा समत्ता। अर्थ-लवणसमुद्र में तीन सौ बाधन और धातकीखण्डमें एक हजार छप्पन ग्रह है। कालोदधिमें तीन हजार छह सौ छधान और पुष्करार्धद्वीपमें छह हजार तीन सौ छत्तीस ग्रह हैं ।।५९९-६०७॥
विशेषार्थ-एक चन्द्र सम्बन्धी ८८ ग्रह हैं, अतः लवणसमुद्र में (८४४ )-३५२, धा० खण्डमें ( ८८x१२) = १०५६, कालोदधिमें (८८४४२) = ३६६६ और पुष्करार्धद्वीपमें ( १८४७२ )=६३३६ ग्रह हैं ।
इसप्रकार ग्रहोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
लवरणसमुद्रादिमें नक्षत्र संख्यालवरणम्मि बारसुत्तर-सयमेत्ताणि हवंति रिक्वाणि । छत्तीयॊह अहिया, तिष्णि - सया पावईसंडे ॥६०१॥
११२ । ३३६ ।