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गाथा । ५९४-५६७ ] सत्तमो महायिारो
[ ४१३ लवासमुद्रादिमें किरणोंका फैलावलवण-प्पहुदि-चउपके, णिय-णिय-खेसेसु विणयर-मयंका ।
बच्चंति ताण लेस्सा, अण्णक्खेत्तं ण कइया वि ॥५६४।।
अर्थ-लवणसमुद्र आदि चारमें जो सूर्य एवं चन्द्र हैं उनकी किरणे अपने-अपने क्षेत्रों में ही जाती हैं, अन्य क्षेत्रमें कदापि नहीं जाती ।।५९४।।
लवणसमुद्रादिमें सूर्य-वीथियोंको संख्याअट्ठासट्ठी ति-सया, लवणम्मि हवंति भाण-वीहीओ। चउरत्तर - एक्कारस - सयमेत्ता धावईसंडे ॥५६॥
३६८ | ११०४ । मपं-लवणसमुद्र में सूर्य-वीथियो तीन सौ अड़सठ हैं और धातकोखण्डमें ग्यारह सौ चार हैं ॥५९५॥
घउसट्टी अठ्ठ-सया, तिणि सहस्साणि कालसलिलम्मि । चउवीसुत्सर-छ-सया, छच्च सहस्साणि पोक्खरद्धम्मि ॥५६६॥
३८६४ । ६६२४ । प्रयं-कालोदधिमें सूर्य-वोथिया तीन हजार आठ सौ चौंसठ और पुष्कराध द्वीपमें छह हजार छह सौ चौबीस हैं ।।५९६।।
विशेषार्थ-दो सूर्य सम्बन्धी १८४ वीथियों होती हैं अतः लवण-समुद्रगस ४ सूर्योकी {".xxx ) = ३६८, धातकीखण्डगत १२ सूर्योकी (
१ १) = ११०४, कालोदधिगत (४४४४२ )=३८६४ और पुष्करार्धद्वीपगत ( २ ) =६६२४ वीथियां हैं।
प्रत्येक सूर्यको मुहूर्त-परिमित गतिका प्रमाणणिय-णिय-परिहि-पमाणे, सट्ठि-मुह सेहि अवहिदे लक्ष।
पत्तेषक भाणूरणं, मुहृत्त - गमरणस्स परिमाणं ॥५९७॥
अर्थ-अपने-अपने परिधि-प्रमाणमें साठ मुहूर्तोंका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना प्रत्येक सूर्यकी मुहूर्तगतिका प्रमाण होता है ।।५९७।।