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क्र.सं.
શું
२
३ हैमवत
४
५
६
विभाग
७
भरत
हिमवान्
महाहिमवान्
हरि
निषध
दक्षिण विदेह
[ ४९ ]
तालिका २ (क्षेत्रफल )
सम्मिलित धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल
६०२, १३३५+
३११२, १८०५+ ६
१. ०९७३, २५०२÷
३, ३६६०, ३५४२ +
६, ५३२४, ३१०६+3
२४,६८१७, २१२३+
३६, ५२६४, ७०७५
५।
विभाग का क्षेत्रफल
६०२, १३३५+f
२५१०, ०४६९+
७८६१, ०६९६ +
२,२६८७. १०४० +
६. १६६३. ९५६६ + ३३
१५, १४९२, ९०१३+१
१४, ८४६७, ४९५१ + १
विभागीय क्षेत्रफलों का योग ३९, ५२८४, ७०७५
नोट - जम्बूद्वीप के उत्तरार्ध में स्थित ऐरावत क्षेत्र से उत्तरविदेह तक के सात विभागों का क्षेत्रफल भी क्रमशः यही होगा ।
ध्यान रहे कि तालिकाओं में उल्लिखित भरत से दक्षिण विदेह तक के सात विभाग मिलकर जो धनुषाकार क्षेत्र बनाते हैं वह जम्बूद्वीप का दक्षिणार्थ है और जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल 'तियोय पणती' चतुर्थ महाधिकार की गाथा ५६ ( देखिये पृष्ठ १७ ) में ७९०५६६४१५० वर्गयोजन पहले ही दिया जा चुका है (यही प्रमाण बाद में गाथा २४०९ में भी पाया है ) । अतः सातों विभागों से बने सम्मिलित धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल ऊपर के मान का आधा होगा जो कि तालिका २ में दिया गया है । इसके लिए सूत्र ( २ ) के उपयोग की आवश्यकता फिर से नहीं है ।
दूसरी बात यह है कि छपे ग्रन्थ में हमें महाहिमवान् पर्वत का क्षेत्रफल उपलब्ध नहीं है क्योंकि तत्सम्बन्धी गाथा हस्तलिखित पोथी में कीड़ों ने खाली है (देखिए पृष्ठ ६३७ पर दिया नोट) बाकी सब निकाले गए क्षेत्रफल 'तिलोयपण्णी' की गाथाओं ( २४०२ से २४०७ ) में दिये गये मूल मानों से पूर्णतया मेल खाते हैं। इससे स्पष्ट है कि हमारी विधि ठीक है और सम्भवतः यही विधि प्राचीनकाल में अपनाई गई थी। हो लिखने की विधि या व्यावहारिक कार्य प्रणाली चाहे भित्र रही हो । एक बात और स्पष्ट है, तालिका १ में दिये गए जीवाओं के मान ही सम्भवतः मूल ग्रंथ में थे । एक या दो स्थानों में भिन्नता सुधार की दृष्टि से किये गए बाद के परिवर्तन के कारण हों ।
इस लेख की सामग्री लेखक के उस संक्षिप्त लेख से मिलती जुलती है जो कि कुछ समय पहले अंग्रेजी में लिखा गया था और अब गणित-भारती नामकी पत्रिका के खंड ६ (१९८७) में प्रकाशित है। *