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________________ [ ४८६ ] 'तिलोयपष्णत्ती' के चतुर्थ महाधिकार की गाथा १६४७ में हिमवान् की उत्तर जीवा का कलात्मक मान एक (यानी १ / १९) है और गाथा १७२२ में हैमवत की उत्तर जीवा का कलात्मक भान " किंचरण सोलस" अर्थात् ( १६ से कुछ कम ) है । अन्य सब मान ग्रंथ के अनुकूल हैं ( देखिये गाथाएँ १७४२, १७६३, १७७५ तथा १७९८ ) । लेकिन हमने तालिका में दी गई जीवानों को प्राप्त करने में वर्गमूल निकालते समय पूराकों के बाद शेष ( चाहे वह आधा या उससे अधिक भी क्यों न हो ) छोड़ने को समाननोति अपनाई है और इसी नीति को अपनाकर अब हम क्षेत्रफल निकालेंगे जो कि ग्रंथ में दिये गये मानों से पूर्णतया मिल जाते हैं । धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल निकालने के लिये 'तिलोयपष्णली' ( देखिये गाथा २४०१ ) में निम्नलिखित सूत्र दिया गया है। क्षेत्रफल (सूक्ष्म) = १० ( जीवा x ६षु / ४) २ .........(3) इसका उपयोग करने पर भरतक्षेत्र का क्षेत्रफल = - (१०/१६) (२७४६५४/१६) ** (१००००/१६) * X =={ V४७२४, ९८१३ ८२२५x१० ) । ३६१ = ( २१, ७३७०, २२२६ ) / ३६१ जहाँ हमने अंश का वर्गमूल केवल पूर्णांकों तक ही निकालकर शेष भाग छोड़ दिया है । इसप्रकार भरत क्षेत्र का क्षेत्रफल = ६०२, १३३५+२६४ / ३६१ ( वर्ग योजन ) जो कि ग्रंथ की गाथा २४०२ ( खंड २, पृ० ६३६ ) में दिये गये मानके समान है । ठीक इसी प्रकार सूत्र ( २ ) का उपयोग करके और वर्गमूल निकालने में वही नीति अपनाकर हमने भरत तथा हिमवान् आदि से बने अन्य धनुषाकार क्षेत्रों का क्षेत्रफल निकाला है। यहां प्राप्त किये गये मान निम्नलिखित तालिका २ में दिये जा रहे हैं।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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