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________________ गाया : ५८६ - ५६१ ] सत्तमो महाहियारो [ ४११ अर्थ - बाईस हजार दो सौ इक्कीस मोजन और पाँच सौ उनंचाससे भाजित दो सो उनतालीस भाग, यह पुष्करार्धद्वीप में एक-एक सूर्यका अन्तराल - प्रमाण है । इससे माधी किरणोंकी गति और उसके बराबर ही समुद्रका अन्तर भी है ।।५८७-५८८।। विशेषार्थ - पुष्करार्धद्वीपका विस्तार ८ लाख यो०, सूर्य संख्या ७२ और इनका बिम्ब विस्तार (x) योजन है। पूर्व नियमानुसार यहाँ के दो सूर्यका पारस्परिक अन्तर प्रमारण इसप्रकार है (100100 · 1934)+3=121* १२१६५४८ - २२२२१ योजन अन्तराल है । किरणोंकी गति EN योजन प्रमाण है और प्रथम पथसे द्वीपकी जगतीका अन्तर भी इतना ही है । लामो महाओं, सुपा सठिद रवीणं । धारवलेलभहिया, अभंतरए बह ऊणा ।। ५८६ ॥ अर्थ- दो पार्श्वभागों में स्थित सूर्यके ये अन्तर अभ्यन्तर में चारक्षेत्र से अधिक और बाह्य में चारक्षेत्र से रहित हैं ।।५८९ ।। जम्बूद्वीपमें अन्तिम मार्ग से अभ्यन्तर में किरणों की गतिका प्रमाण - - Vx= ११११० जंबूयंके दोन्हं, लेस्सा वच्चति चरिम मग्गादो । अब्भंतरए णभ-तिय-तिय-सुण्णा पंच बोयराया ||५६०|| ५०३३० । - जम्बूद्वीपमें अन्तिम मागंसे अभ्यन्तर में दोनों चन्द्र-सूर्यो की किरणें शून्य तीन, तीन, शून्य और पाँच इस अंक क्रमसे पचास हजार तीन सौ तीस ( ५०३३० ) योजन प्रमाण जाती हैं ।। ५९० ।। विशेषार्थ - जम्बूद्वीपका मेरु पर्वत पर्यन्त व्यास ५० हजार योजन है। गाया ५८६ के नियमानुसार इसमें लवणसमुद्र सम्बन्धी ३३० योजन चारक्षेत्रका प्रमाण जोड़ देनेपर जम्बूद्वीपमें अन्तिम मार्ग से अभ्यन्तर में किरणोंका प्रसार ( ५००००+ ३३० ) = ५०३३० योजन पर्यन्त होता है । लवणसमुद्रमें जम्बूद्वीपस्थ चन्द्रादिकी किरणों की गतिका प्रमाण चरिम- पहावो बाहि, लवणे वो रणभ-ख-ति-तिय-जोयगया । वच्च लेस्सा अंसा, सयं च हारा तिसीदि-अहिय-सया || ५६१।। ३३००२ । १९५ ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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