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________________ तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ५८५ - ५८८ विशेषार्थ- -धा० खण्ड का विस्तार ४ लाख योजन, सूर्य १२ और इनका बिम्ब विस्तार ) = योजन है। यहाँ दो सूर्योका पारस्परिक अन्तर ४०००० – { kix)= १६१३३८५१ - - ६६६६५२६] योजन है । ४१० ] ( fix + RECUE किरणोंकी गति ( ३४६५६ ) = ३३३३२१३ योजन और प्रथम पथसे द्वीपकी जगती का अन्तर भी ३३३३२ योजन ही है । कालोदधिमें स्थित सूर्य आदिके अन्तर प्रमाण अट्टलीस- सहस्सा, चउरणउदी ओयणाणि पंच सया अड्डाहसरि हारो, बारसय सयाणि इगिसीवी ॥ ५८५ ॥ - ३८०९४ । ३६ एवं अंतरमाणं, एक्केवक - रवीण काल-सलिलम्मि । लेस्सागो तवद्ध, तस्सरिसं उबहि आबाहा ।।५८६॥ अर्थ - अड़तीस हजार चौरानब योजन और बारह सौ इक्यासीसे भाजित पाँच सौ अठत्तर भाग, यह कालोदसमुद्र में एक-एक सूर्य का अन्तराल प्रमाण है । इससे श्राधी किरणोंकी गति और उसके ही बराबर समुद्रका प्रत्तर भी है ।।५८५-५८६ ॥ विशेषार्थ -- कालोदधिका विस्तार ८ लाख योजन, सूर्य ४२ और इनका बिम्ब विस्तार ( *** )=योजन है । ( ८००००० - १ ) = ४८५६६६२ = ३८०९४०३ योजन दो सूर्यका पारस्परिक अन्तर है । format गति = ४८७३८६ 9 अन्तर भी १९०४७योजन है । - १९०४७योजन और प्रथम पथसे समुद्रकी जगतीका पुष्करार्धगत सूर्यादिके अन्तर प्रमाण बावीस - सहस्सारण, बे-सय- इगिवीस जोयणा मंसा । घोष्टि-सया उणदाल, हारो उणवण्ण-पंच-सया ॥८७॥ २२२२१ । १ । एवं अंतरमाणं, एक्केषक रवीण पोक्खरम्मि । लेस्सागदी तaa', तस्सरिसा जयहि श्रावाहा ।।५८६ ।। -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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