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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ५४२ - ५४७
रात्रि के प्रमाणका बराबर होना विषुप है। पांच विषुप दक्षिणायन के अर्धकालमें और पांच उत्तरायण के अर्धकाल में इसप्रकार एक युगमें दस विषुप होते हैं । युग के प्रारम्भमें दक्षिणायन सम्बन्धी प्रथम विषुप आरम्भके ६ प ( ३ माह ) व्यतीत होनेपर कार्तिक मास के कृष्ण पक्षको तृतीया तिथिको चन्द्र द्वारा, रोहिणी नक्षत्रके भुक्तिकालमें होता है ।
वइसाह' - किण्ह पक्ले, णव सीए धणिष्ट्र-गाम-वस्वते ।
श्रादीवो श्रद्धारस, पथश्रमदीने वुइज्जयं उसुपं ॥ ५४२ ||
अर्थ- दूसरा विषुप श्रादिसे अठारह पर्व बीतनेपर वैशाख मासके कृष्ण पक्षकी नवमीको धनिष्ठा नक्षत्र के रहते होता है ।। ५४२ ।।
कत्ति मासे पुणिमि-दिवसे इगितीस पय्वमादीदो |
तीदाए सादीए, रिक्खे होदि हु तइज्जयं विषं ॥। ५४३ ||
अर्थ- आदिसे इकतीस पर्व बीत जानेपर कार्तिक मासकी पूर्णिमा के दिन स्वाति नक्षत्र के रहते तीसरा विधुप होता है ।। ५४३ ॥
इसाह- सुक्क पक्खे, छट्टीए पुणव्वसुम्मि णक्लत्ते । तेदाल - गदे पथ्यमदीवेसु चउत्थयं विसुपं ॥ ५४४ ॥
- आदिसे तैतालीस पर्वोके व्यतीत हो जानेपर वंशाख मासमें शुक्ल पक्षको षष्ठी तिथिको पुनर्वसु नक्षत्र के रहते चौथा विषुप होता है ||५४४ ||
कति मासे सुकिल-बार सिए पंच-वण्ण परिसंखे । पव्यमदीदे उसुयं उत्तरभद्दपदे पंचमं होदि ।। ५४५ ।।
अर्थ- आदिसे पचपन पर्व व्यतीत होनेपर कार्तिक मास में शुक्ल पक्षको द्वादशीको उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के रहते पांच विषुप होता है ।। ५४५||
इसाह - कण्हतइए, अणुराहे अट्ठसट्टि पश्यमदीये उसुपं, घट्टमयं होदि
अर्थ- आदिसे अड़सठ पर्व व्यतीत हो जानेपर वैशाख मास में कृष्ण पक्षकी तृतीयाके दिन अनुराधा नक्षत्र के रहते छठा विषुप होता है ।। ५४६ ॥
परिसंखे । णियमेणं । । ५४६ ||
कत्तिय मासे किण्हे. नवमी-दिवसे महाए णक्यते ।
सीदी पथ्यमदीदे, होवि पुढं सत्तमं उसुयं ।। ५४७ ॥
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१. द. व. क. ज. बहसम्म ।