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गाथा : ५४१ ] सत्तमो महाहियारो
[ ३९७ अर्थ-पांच वर्षों के भीतर माघ मासमें दक्षिण अयनके होनेपर सूर्यको ये पांच आवृत्तियाँ नियमसे होती हैं ।।५४०।।
विदयार्थ-- प्रत्येक नाम: पूर्व दसरा दिशामें स्थित रहता है और उपर्युक्त तिथिनक्षत्रोंके योग में उत्तरकी ओर प्रस्थान करता है, इसलिए पांच वर्षों तक प्रत्येक माघ मास में उत्तरायण सम्बन्धी एक आवृत्ति होती है। इसप्रकार पांच वर्षों में पांच आवृत्तियां होती हैं । यथा
वत्ति
हस्त
दक्षिणायन-सूर्य
उत्तरायण-सूर्य मास पक्ष तिथि
मास | पक्ष | तिथि नक्षत्र १ ली प्रथम श्रावण कृष्ण प्रतिपदा अभिजित् २ री| प्रथम कृ०, सप्तमी ३ री द्वितीय श्रावण कृष्ण त्रयोदशी मृग० ४ थी| द्वितीय चतुर्थी | शत. ५ वीं | तृतीय श्रावण शुक्ल | दसमी विशाखा ६ ठी| तृतीय कृ० प्रतिपदा| पुष्य ७ वी चतुर्थ श्रावण कृष्ण सप्तमी | रेवती | ८ को चतुर्थ कृत्रियोदशी ९ वीं| पंचम श्रावण शुक्ल चतुर्थी पूर्वा फा० १०वी पंचम | माघ | शु० | दसमी | कृतिका
उपयुक्त पांच वर्षों में युग समाप्त हो जाता है । छठे वर्षसे पूर्वोक्त व्यवस्था पुनः प्रारम्भ हो जाती है । दक्षिणायनका प्रारम्भ सदा प्रथम वीथीसे और उत्तरायणका प्रारम्भ अन्तिम वीथीसे ही होता है।
युगके दस अयनों में विषुपोंके पर्व, तिथि और नक्षत्र--- होदि हु पढमं विसुपं, 'कत्तिय-मासम्मि किण्ह-तदियाए।
छस्सु पन्चमदीदेसु, वि रोहिणी - णामम्मि रिवखम्मि ॥५४१॥ अर्थ-यह प्रथम विषुप छह पोंके ( पूर्णमासी और अमावस्या ) बीतनेपर कार्तिक मासके कृष्ण पक्षको तृतीया तिथि में रोहिणी नक्षत्रके रहते होता है ॥५४१।।
विशेषार्य-शुक्ल और कृष्ण पक्षके पूर्ण होनेपर जो पूर्णिमा और अमावस्या होती है। उसका नाम पर्व है । सूर्यका एक अयन छह मासका होता है। एक प्रयनके अर्धभागको प्राप्त होनेपर जिस काल में दिन और रात्रिका प्रमाण बराबर होता है उस कालको विषुप कहते हैं। अर्थात् दिन
- . .-..-..- - - १. ब. फित्तिय ।