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________________ ३६६ ) तिलोयपण्णत्तो [ गाथा । ५३६-५४० अर्थ-श्रावण कृष्णा सप्तमीको रेवती नक्षत्रका योग होनेपर चतुर्थ और श्रावण शुक्ला चतुर्थीको पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रके योगमें पंचम आवृत्ति होती है ॥५३५॥ पंचसु वरिसे एदे, सावण - मासम्मि उत्तरे फट्ठ। प्रावित्ती वुमणीणं, पंचेघ य होंति णियमेणं ॥५३६।। मर्य- सूर्यके उत्तर दिशाको प्राप्त होनेपर पांच वर्षों के भीतर श्रावण मासमें नियमसे ये पाच ही प्रावृत्तियां होती हैं ।। ५३६।। विशेषाय--एक युग पाँच वर्षका होता है। प्रत्येक श्रावण मासमें सूर्य उत्तर दिशामें ही स्थित रहता है तथा उपयुक्त तिथि-नक्षत्रों के योगमें दक्षिणकी ओर प्रस्थान करता है, इसलिए पांच वर्षों तक प्रत्येक श्रावण मास में दक्षिणायन सम्बन्धी एक-एक आवृत्ति होती है । इसप्रकार पांच वर्षोंमें पांच प्रावृत्तियां होती हैं। सूर्य सम्बन्धी पाँच उत्तरावृत्तियांमाघस्स किण्ह - पक्खे, सत्तमिण सड़-णाम-सहने । हत्याम्म ट्ठिव-दुमणी, वविखणदो एवि उत्तराभिमुहो ॥५३७।। अर्थ-हस्त नक्षत्रपर स्थित सूर्य माघ मासके कृष्ण-पक्षमें सप्तमीके दिन रुद्र नामक मुहूर्तके होते दक्षिणसे उत्तराभिमुख होता है ।।५३७॥ चोत्तीए सदभिसए, सुक्के बिदिया तइज्जयं किण्हे । पक्खे पुस्से रिक्खे, पडिवाए होवि तम्मासे ।।५३८।। प्रर्थ-इसी मासमें गतभिषा नक्षत्रके रहने शुक्ल पक्षको चतुर्थी के दिन द्वितीय और इसी मासके कृष्ण पक्षको प्रतिपदाको पुष्य नक्षत्रके रहते तृतीय आवृत्ति होती है ।।५३८।। किण्हे तयोदसीए, मूले रिक्सम्मि तुरिम-प्रायित्ती । सुक्के पक्खे बसमी, कित्तिय-रिक्खमि पंचमिया ॥५३६।। ययं-कृष्ण पक्षको त्रयोदशीके दिन मूल नक्षत्रके योगमें चतुर्थ और इसो मासके शुक्ल पक्षकी दसमी तिथिको कृतिका नक्षत्रके रहते पंचम प्रावृत्ति होती है ।।५३९।। पंचसु वरिसे एवे, माघे मासम्मि दक्षिणे कठे। आवित्ती दुमणीणं, पंचेव य होंति णियमेणं ॥५४०॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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