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________________ O ३५. ] तिलोधपण्णत्ती [ गाथा 1 ५३०-५३१ विशेषार्थ-पूर्व अयनकी समाप्ति और नवीन अयनके प्रारम्भको प्रावृत्ति कहते हैं । पंचवर्षात्मक एक युगमें थे प्रावृत्तियाँ दस बार होती हैं, इसीलिए इनका गच्छ पांच-पांच कहा गया है । इनमें १, ३, ५, ७ और हवीं प्रावृत्ति दक्षिणायन सम्बन्धी और २, ४, ६, ८ तथा १० वी आवृत्ति उत्तरायण-सम्बन्धी है। एक युगके विषुपोंकी संख्यातिब्भव दु-खेत्तरयं, दस-पद-परित्त-दो हि अवहरिवं । उसुपस्स य होवि पदं, वोच्छ आउट्टि-उसुपदिण-रिक्ख ॥५३०॥ प्रयं-एक वर्ष में दो अयन होते हैं। प्रत्येक अयनके तीन माह व्यतीत होनेपर एक विषुप होता है । इसप्रकार एक युगमें दस विषुप होते हैं । इन्हें दो से माजित करनेपर एक-एक युगमें विभिन्न प्रयन सम्बन्धी पांच-पांच विषुप होते हैं । अब यहाँ आवृत्ति और विष्प सम्बन्धी दिनके नक्षत्र निकालनेकी विधि कहूँगा ।।५३०।। तिथि, पक्ष और पर्व निकालनेकी विधिरूऊर्णकं छग्गुणमेग-जुई उसुपो ति तिथि - माणं । तयार - गुणं पच्वं, सम-विसम-किण्ह-सुषकं च ॥५३१।। अर्थ-एक कम आवृत्तिके पदको छहसे गुरिणत कर उसमें एक जोड़नेपर आवृत्तिकी तिथि और उसी लब्धमें तीन जोड़नेपर विषुपकी तिथिका प्रमाण प्राप्त होता है। तिथि संख्याके विषम होनेपर कृष्णपक्ष और सम होनेपर शुक्ल पक्ष होता है । तथा तिथि संख्याको द्विगुणित करनेपर पर्वका प्रमाण प्राप्त होता है 11५३१।। विशेषार्य-जो प्रावृत्ति विवक्षित हो उसमेंसे एक घटाकर लब्धको छहसे गुणा करके एकका अंक जोड़नेसे प्रावृत्तिकी तिथि और उसी लब्धमें तीनका अंक जोड़नेसे विषुपकी तिथि संख्या प्राप्त होती है । यथा तृतीय आवृत्ति विवक्षित है अतः ( ३ – १) ४६=१२:१२+१- १३ तिथि । तृतीय आत्ति कृष्णपक्षकी त्रयोदशीको होगी। इसीप्रकार ( ३ -१)x६-१२११२+३=१५ तिथि। यहाँ भी तृतीय विषुप कृष्णपक्षकी अमावस्याको होगा। दोनों तिथियोंके अंक विषम हैं अतः कृष्णपक्ष ग्रहण किया गया है । दूसरा विषुप ९ वी तिथिको होता है । इसे दुगुना ( ९४२) करनेपर दूसरे विषुपके १८ पर्व प्राप्त होते हैं।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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