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________________ सत्तमो महाहियारो चन्द्र के साथ उत्कृष्ट नक्षत्रोंका योग--- तिण्णेव उत्तरानो, पुणव्यसू रोहिणी विसाहा य । पणदाल - महुत्त संजुता ॥५२७॥ एवे छण्णक्खत्ता, गाथा : ५२७-५२९ ] ४५ । पर्थ - तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा, ये छह ( उत्कृष्ट ) नक्षत्र पैंतालीस (४५) मुहूर्त तक चन्द्रके साथ संयुक्त रहते हैं ।।५२७ ।। विशेषार्थ - पूर्वोक्त प्रक्रियानुसार प्रत्येक उत्कृष्ट न० के साथ चन्द्रका योग ( ३०१५ ÷६७ ) = ४५ मुहूर्त और सर्व उ० नक्षत्रोंके साथ ( ४५ मु० x ६ ९ दिन पर्यन्त रहता है । [ ३९३ दक्षिण और उससे भी हैं। इनके भ्रमण में चन्द्र अभिजित् नक्षत्रको ९३७ मुहूर्त + ज० नक्षत्रोंको ३ दिन + मध्यम न० को १५ दिन + और उत्कृष्ट नक्षत्रोंको ९ दिन २७ दिन मुहूतौमें २८ नक्षत्रोंका भोग करता है । सूर्य सम्बन्धी अयन मरिणस्स एक श्रयणे, दिवसा तेसीधि अहिय-एक्क-सयं । दक्खिण श्रयणं श्रादी, उत्तर- श्रयणं च अवसाणं ।। ५२८ ॥ ❤ १८३ । अर्थ – सूर्यके एक प्रयनमें एक सौ तेरासी दिन होते हैं । इन अयनोंमेंसे दक्षिण भवन आदि ( प्रारम्भ ) में और उत्तर प्रयन अन्तमें होता है ।।५२८ ।। विशेषार्थ - सूर्य भ्रमणकी १०४ वीथियाँ हैं। इनमेंसे जब सूर्य प्रथम बीथीमें स्थित होता है तब दक्षिणायनका और जब अन्तिम वीथी में स्थित होता है तब उत्तरायणका प्रारम्भ होता है । दक्षिण एवं उत्तर अपनोंमें प्रावृत्ति-संख्या- एकावि-- उत्तरियं दक्षिण- आउट्टियाए पंच पदा । बो-आदि-दु-उत्तरयं, उत्तर- प्राउट्टियाए पंच पदा ।। ५२ ।। अर्थ - ( सूर्यकी ) दक्षिणावृत्ति एकको आदि लेकर दो-दो की वृद्धि प्रमाण ( १, ३, ५, ७) होती है। इसमें गच्छ पांच हैं। उत्तरावृत्ति भी दो को आदि लेकर दो-दो की वृद्धि प्रमाण ( २, ४, ६, ८, १०) होती है। इसमें भी गच्छ पाँच हैं ।। ५२९ ॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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