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________________ तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ५९४-५२६ अभिजिस्स चंद • जोगो', सट्ठी खंडिदे मुहुत्तेगे। भागो य सत्तवीसा, ते पुरण अहिया गय - मुहुत्ते ॥५२४॥ अर्थ-जब चन्द्र एक महूर्तमें नक्षत्रके गगनस्तएनसे ( १८३५ – १७६८ -- ) सड़सठ (६७) गगनखण्ड पीछे रह जाता है तब उन ( नक्षत्रों ) के गगनखण्डों तक साथ गमन करने में कितना समय लगेगा ? अभिजित् नक्षत्रके ( ६३०) गगनखण्डोंमें सड़सठका भाग देनेपर एक मुहूर्तके सड़सठ भागों में से सत्ताईस भाग अधिक नौ मुहूर्त (३१ =९१७ मु०) लब्ध पाता है। अर्थात् चन्द्रका अभिजित् नक्षत्रके साथ गमन करनेका काल ९१७ मुहूर्त प्रमाण है ।।५२३-५२४।। चन्द्रके साथ जघन्य नक्षत्रोंका भुक्ति काल-- सदभिस भरणी-अद्दा, सादी तह प्रस्सलेस-जेट्ठा य । एदे छण्णक्वंता, पण्णरस - मूहुत्त - संजुत्ता ॥५२॥ प्रर्थ-शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, माश्लेषा और ज्येष्ठा, ये छह नक्षत्र चन्द्रके साथ पन्द्रह मुहूर्त पर्यन्त रहते हैं ३१५२५।। विशेषार्थ-पूर्वोक्त प्रक्रियानुसार प्रत्येक ज० न० के साथ चन्द्रका योग (१००५-६७) =१५ मुहूर्त और सर्व ज. नक्षत्रोंके साथ ( १५ मु०४ ६)=३ दिन पर्यन्त रहता है। चन्द्र के साथ मध्यम नक्षत्रोंका योगअवसेसा णक्खता, पण्णरसाए तिसदि मुहत्ता य । चंदम्मि एस जोपो, णक्खत्ताणं समपखादं ॥५२६।। ३.। अर्थ-अवशेष पन्द्रह ( मध्यम ) नक्षन चन्द्रमाके साथ तीस मुहूर्त तक रहते हैं। यह उन नक्षन्नोंका योग कहा है ।।५२६।। विशेषार्ष-पूर्वोक्त प्रक्रियानुसार प्रत्येक मन के साथ चन्द्रका योग ( २०१०+६७) -३० मुहूर्त और सर्व म० नक्षनोंके साथ ( ३० मु०४१५ ) = १५ दिन पर्यन्त रहता है। १. द..क, ज. सारो। २.द.ब.६।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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