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________________ गाथा ! ५०६-५११ ] सत्तगो महाहियारो अर्थ-नक्षत्र एक मुहूर्त में अठारह सौ पैंतीस ( १८३५) गगनखण्ड रूप सीमा क्षेत्रमें जाता है और चन्द्र ( उसी एक मुहूर्त में ) सत्तरह सौ अड़सठ ( १७६८ ) नभखण्ड रूप सीमा क्षेत्रमें जाता है ।।५०८।। अट्ठारस-भाग-सया, तोसं गच्छवि रवी' मुहत्तेणं । णक्खत्त - सीम - छेदो, ते चरइ इमेण बोद्धव्वा ॥५०९।। पर्थ सूर्य एक मुहूर्त में अठारह सौ तीस ( १८३०) नभखण्डरूप सीमा क्षेत्रमें जाता है। नक्षत्रोंके सीमा क्षेत्रसे सूर्य और चन्द्रका गमन इसी प्रकार जानना चाहिए । ५०६।। सूर्यको अपेक्षा चन्द्र एवं नक्षत्रके अधिक गगनखण्डसत्तरसट्ठीणि तु, चंदे सुरे 'विसद्धि-अहियं च । सट्ठी विय भगणा, चरइ मुहत्तण भागारणं ॥५१०॥ १७६८ । १८३० । १८३५ ।। पर्थ-चन्द्र एक मुहूर्त में सत्तरह सौ अड़सठ गगनखण्ड लांघता है। इसकी अपेक्षा सूर्य बासठ गगनखण्ड अधिक और नक्षत्रगण सड़सठ गगनखण्ड अधिक लांघते हैं ॥५१०।। विशेषार्थ-एक मुहूर्त के गमनकी अपेक्षा चन्द्रके नभखण्ड १७६८, सूर्यके १८३० पौर नक्षत्रके १८३५ हैं । चन्द्र के गगनखण्डोंसे सूर्य के गगनखण्ड ( १८३० – १७६८ )=६२ और नक्षत्रके (१८३५ - १७६८ )=६७ गगनखण्ड अधिक है । एक ही साथ चन्द्र, सूर्य और नक्षत्र ने गमन करना प्रारम्भ किया और तीनोंने अपने-अपने गगनखण्डोंको समाप्त कर दिया । अर्थात् एक मुहूर्त में चन्द्रने १७६८ गगनखण्डोंका भ्रमण किया, जबकि सूर्यने १८३० और नक्षत्रने १८३५ का किया, अतः चन्द्र सूर्यसे ६२ और नक्षत्रसे ६७ गगनखण्ड पोछे रहा। सूर्यके तीस मुहूतौक गगनखण्डोंका प्रमाणचंद-रवि-गवणखडे, अण्णोण्ण-विसुद्ध-सेस-बासट्ठी । एय-मुहत्त - पमाणं, बासट्टि - फलिच्छया तीसा ॥५११॥ १। ६२ । ३० । १. द. ब. क. ज. रखे। २. ८. क. ज. चेटुइ । ३. ब. विभट्ठि ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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