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लिलोयपण्णत्ती
| गाथा : ५१२-५१४ पर्य-चन्द्र और सूर्यके गानों को पाने पर मारा क्षेत्र रहते हैं। जब सूर्य एक मुहूर्तमें ( चन्द्रकी अपेक्षा ) बासठ गगनखण्ड अधिक जाता है तब वह तीस मुहूर्तमें कितने गगनखण्ड अधिक जावेगा? इसप्रकार राशिक करने पर यहां एक मुहूर्त प्रमाण राशि, बासठ फलराशि और तीस मुहूर्त इच्छा-राशि ( ६३३३° ) होती है ।।५११।।
हौराशिक द्वारा प्राप्त १८६० नभखण्डोंके गमन-मुहूर्त का कालएय-तिण्णि-सुण्णं, गयणक्खंडेण लब्भवि महत्तं । अट्टरसट्ठी य तहा, गयणक्खंडेण कि लद्ध॥५१२॥
१८३० । १८६० । १।। चंदावो सिग्घ-गदी, दिवस-मुहलेण धरदि खल सूरो। एक्कं चेव मुहत्तं, एक्कं एयट्ठि - भागं च ।।५१३॥
अर्थ-जब एक, आठ, तीन और शून्य अर्थात् १८३० गगनखण्डोंके अतिक्रमण में एक मुहूर्त प्राप्त होता है, तब अठारह सौ साठ ( १८६० ) नभखण्डोंके अतिक्रमणमें क्या प्राप्त होगा? सूर्य, चन्द्रकी अपेक्षा दिनमुहूर्त अर्थात् तीस मुहूर्तों में एक मुहूर्त और एक मुहूर्त के इकसठवें भाग अधिक शीघ्र गमन करता है । अर्थात् १८६० नभखण्डोंके अतिक्रमणका काल ( Rass= = ) १ मुहूतं प्राप्त होगा ।।५१२-५१३।।
नक्षत्रके तीस मुहूर्तोंके अधिक नभखण्डरवि-रिक्ख-गगणखंडे, अण्णोण्णं सोहिऊण ज सेसं । एय - मुहुत्त - पमाणं, फल पण इच्छा तहा तीसं ॥५१४॥
१ । ५ । ३० । अर्थ-सूर्य और नक्षत्रोंके गगनखण्डोंको परस्पर घटाकर जो शेष रहे उसे ग्रहण करनेपर यहाँ एक मुहूर्त प्रमाण राशि, पांच ( नक्षत्र ) फलराशि और तीस मुहूर्त इच्छाराशि है ॥५१४॥
विशेषार्थ-नक्षत्रके गवं० १८३५ --- १८३० सूर्यके ग० खं०= ५ अवशेष । जब नक्षत्र ( सूर्य की अपेक्षा ) एक मुहूर्त में ५ खण्ड अधिक जाता है, तब तीस मुहूर्त में कितने खण्ड जावेगा ? इस प्रकार राशिक करने पर (2 ) १५० गगनखण्ड प्राप्त होते हैं ।