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गाथा : ५००- ५०३ ]
सत्तमो महाहियारो
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प्र - चन्द्र से सूर्य, सूर्यसे ग्रह, ग्रहोंसे नक्षत्र और नक्षत्रोंसे भी तारा शीघ्र गमन करनेवाले होते हैं ।।४९९ ।।
इस प्रकार ताराओं का कथन समाप्त हुआ ।
सूर्य एवं चन्द्र के प्रयन और उनमें दिन-रात्रियोंकी संख्याप्राणिव रवि स राम यहां एजे चारी । णत्थि श्रयणाणि भगणे, नियमा ताराण एमेव ॥ ५००।
अर्थ--- सूर्य, चन्द्र और जो अपने प्रपने क्षेत्रमें संचार करने वाले ग्रह हैं उनके अयन होते हैं । नक्षत्र - समूह और ताराओं के इसप्रकार अयनों का नियम नहीं है ||५००॥
रवि श्रयणे एक्केक, तेसीदिन्सया हवंति दिण-रती । तेरस विदा वि चंदे, सत्तट्ठी भाग चउचालं ॥ ५०१ ॥
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१८३ | १३ | ४४
अर्थ- सूर्य के प्रत्येक अयनमें एक सौ तेरासी ( १८३ ) दिन रात्रियाँ और चन्द्रके अयन में सड़सठ भागों में से चवालीस भाग अधिक तेरह ( १३३४ ) दिन ( और रात्रियाँ ) होते हैं ।। ५०१ ||
दक्खिण-अघणं श्रावी, पज्जवसाणं तु उत्तरं अयणं ।
सव्येस सुराणं विवरीवं होदि चंदाणं ।। ५०२ ||
अर्थ- सब सूर्योका दक्षिण अयन प्रादिमें और उत्तर प्रयन अन्तमें होता है । चन्द्रोंके अयनोंका कम इससे विपरीत है ।। ५०२||
अभिजित् नक्षत्र के गगनखण्ड---
छच्चेव सया तीस, भागाणं अभिजि-रिक्स - विक्खंभा । विट्ठा सव्वं दरिसिहि, सन्धेहि प्रणंत णाणेणं ||५०३ ॥
१. द. ब. क. ज. समयस्खेत्ते । २. ब. क. जं ।
६३० ।
अर्थ - अभिजित् नक्षत्रके विस्तार स्वरूप उसके गगन खण्डों का प्रमाण छह सौ तीस ( ६३० ) है । उसे सभी सर्व-दर्शियोंने श्रनन्त ज्ञानले देखा है ||५०३१