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________________ ३८४ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा ! ४९७-४६६ क्षेत्र और पर्वत | दोनों चन्द्र सम्बन्धी|... |क्षेत्र और पर्वत के नाम | तारापोंकी संख्या | * के नाम दोनों चन्द्र सम्बन्धी ताराओंकी संख्या २२५६० कोड़ाकोड़ी ११२८० " ५६४० भरतक्षेत्र | ७०५ कोड़ाकोड़ी ८. | नील पर्वत हिमवन् पर्वत | १४१० ॥ ६. रम्यक क्षेत्र हैमवत क्षेत्र २८२० , रुक्मि पर्वत महाहिमवन् प० ५६४० , हैरण्यवत क्षेत्र हरिक्षेत्र ११२८० ॥ शिखरिन् प० निषध पर्वत २२५६० , १३.| ऐरावत क्षेत्र विदेह क्षेत्र ४५१२० ॥ २८२० १४१० छचीस अचर - तारा, जंयूवीवस्स चउ-दिसा-भाए। एवायो दो- ससिणो, परिवारा प्रद्धमेक्कस्मि ॥४९७॥ ३६ । ६६६७५००००००००००००००। भर्ष-जम्बूद्वीपके चारों दिशा-भागोंमें छत्तीस अचर (ध्र व ) तारा स्थित हैं। ये ( १३३९५० कोडाकोड़ी ) दो चन्द्रोंके परिवार-तारे हैं। इनसे आधे ( ६६९७५ कोडाकोड़ी ) एक चन्द्र के परिवार-तारे समझना चाहिए ॥४६७॥ चन्द्रसे तारा पर्यंत ज्योतिषी देवोंके गमन-विशेषरिक्स-गमरणादु अहियं, गमणं जाणेज सयल-ताराणं । ताणं गाम - प्पहुविसु, उवएसो संपद पणडो॥४६॥ अर्थ—सब तारामोंका गमन नक्षत्रोंके गमनसे अधिक जानना चाहिए । इनके नामादिकका उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है ।।४८६।। चंदावो मत्तंगे, मत्तंडादो गहा गहाहितो। रिक्खा रिक्वाहितो, तारापो होति सिग्ध - गवी ॥४६॥ । एवं ताराणं परवणं समतं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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