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गाथा : ४९६ ]
सत्तमो महायिारो जब कृत्तिकाका अस्त तब मघा का मध्याह्न और अनु० का उदय ।। ., रोहिणीका , , पू० फा० , ,, ज्येष्ठा , । ,, ग्रामि हा .. .. . .. . . । । , पार्टाका , हस्त
, पू० षा.. । " पुनर्वसुका ॥ , चित्रा
, उ.षा... । , पुष्यका , , स्वाति ॥ , अभिजित् .. । ., आश्लेषाका , , विशाखा , श्रवण . । , मघाका .. , अनुराधा , , धनिष्ठा । । । पू० फा०का , , ज्येष्ठा , शत० , । .. उ० फा०का , , मूल , । पू० मा०, । " हस्तका " . पू० षा० , . उ. भा०, । , चित्राका , उषा० , , रेवती , । ,, स्वातिका , , अभिजित् ॥ . अश्विनी , । .. विशाखाका , , श्रवण , , भरणी , ।
इत्यादिइसप्रकार नक्षत्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
जम्बूद्वीपस्थ चर एवं अचर (घ्र व ) तारामोंका निरूपणविहा चरयचराओ, पइग्ण-साराओ तारण चर-संखा। कोडाकोडी - लवलं, तेत्तीस-सहस्स-णव-सया पण्णं ॥४६॥
१३३९५००००००००००००००० । अर्थ-प्रकीर्णक तारे चर और अचर रूपसे दो प्रकारके होते हैं। इनमें चर ताराओंकी संख्या एक लाख तैंतीस हजार नौ सौ पचास ( १३३९५० ) कोडाकोड़ी है ॥४९६।।
विशेषार्थ-जम्बूद्वीपस्थ क्षेत्र-कुलाचलादिकी कुल शलाकाएँ (१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, ३२, १६, ८, ४, २, १= ) १६० हैं । जम्बूद्वीपस्थ दो चन्द्रोंसे सम्बन्धित १३३९५० कोड़ाकोड़ी
। १३३९५० कोड़ाकोड़ी ) =७०५ कोडाकोड़ी लब्ध प्राप्त होता ताराओंमें १६० का भाग देनेपर ( १२२१ है। इसको अपनी-अपनी शलाकाओंसे गुणा करनेपर तत् तत् क्षेत्र एवं पर्वत सम्बन्धी तारामोंका प्रमाण प्राप्त होता है । यथा