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________________ गाथा : ४९९-४९२ सत्तमो महाहियारो [ ३८१ विशेवार्य ज्येष्ठा नक्षत्र के ग्यारहवें पथ में भ्रमण करता है । इस पथकी परिधिका प्रमाण ३१७३९२१¥ योजन है । इस परिधि ज्यष्ठाके एक मुहूर्त के गमन क्षेत्रका प्रमाण (11247 3193 FAXERO ) = ५३०४६० योजन प्राप्त होता है । पुष्यादि नक्षत्रों में से प्रत्येक के गमन क्षेत्रका प्रमाण पुस्सो सिलेसाश्रो, पुव्वासादाश्रो उत्तरासादा | हत्थो मिगसिर मूला, अद्दाओ अट्ठ पत्तेवकं ॥४८६|| तेवण्ण-सया उणवीस' - जोयणा जंति इगि मुहुत्तेणं । प्राणउदी पव-सय, पण्णरस सहस्स अंसा य ॥। ४६० ।। ५३१९ । ३५६६६ अर्थ- पुष्य, आश्लेषा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, हस्त, मृगशीर्षा, मूल और आर्द्रा, इन आठ नक्षत्रों में प्रत्येक एक मुहूर्त में पांच हजार तीन सौ उन्नीस योजन और पन्द्रह हजार नौ सौ अट्ठानवे भाग अधिक गमन करते हैं ।।४६९-४१० ॥ - विशेषार्थ - उपर्युक्त आठों नक्षत्र चन्द्रके पन्द्रहवें ( अन्तिम ) पथमें भ्रमण करते हैं। इस बाह्य पथकी परिधिका प्रमारण ३१८३१३३६ योजन है । इस परिधि में पुष्य आदि प्रत्येक नक्षत्रके एक मुहूर्तके गमन क्षेत्रका प्रमाण ( = ५३१९३५६६ः योजन है, किन्तु गाथा में ५३१९६१ योजन दर्शाया गया है। नक्षत्रों के मण्डल क्षेत्रोंका प्रमाण मंडल -खेत- पमाणं, जहण्ण-भे तीस जोया होंति । तं चिगुणं तिगुणं, मज्झिम वर मेसु पत्तेश्कं ॥ ४६१ ।। ३० । ६० । ६० । अर्थ - जघन्य नक्षत्रों के मण्डलक्षेत्रका प्रमाण तीस (३०) योजन और इससे तिगुना वही प्रमाण क्रमश: मध्यम ( नक्षत्रोंका ६० ) और उत्कृष्ट ( का ९० यो० ) प्रत्येकका है || ४६१ ॥ अट्ठारस जोयणया, हवेबि अभिजिस्स मंडलं खेतं । सहिय-ह- मेत्ताओ, निघ-जिय-ताराण मंडल - खिवीश्रो ।।४६२ ॥ १८ १ १. द. उग्रवण्णुमय जोयणा, ब. उण जोया । दूना एवं नक्षत्रों में से
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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