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गाथा : ४८३ - ४८५ ]
सत्तमो महाहियारो
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विशेषार्थ - पुनर्वसु और मघा नक्षत्र चन्द्रकी तृतीय वीथीमें भ्रमण करते हैं ! इस वीथीको परिधिका प्रमाण ३१५५४६१ योजन है । किन्तु पुनर्वसु और मचाका एक मुहूर्त का गमन मंत्र निकालते समय अधिकका प्रमाण (ई ) छोड़कर त्रैराशिक किया गया है ।
जिसका प्रमाण ( ११५५४६४२११७ ) ० ५२७३
योजन प्राप्त होता है ।
नोट- आगे शेष छह गलियोंकी परिधिके प्रमाण में से भी अधिक का प्रमाण छोड़ कर गमन क्षेत्र प्राप्त किया गया है ।
कृत्तिका नक्षत्रका एक मुहूर्तका गमन-क्षेत्र -
बावण्ण सया पणसीबि उत्तरा सत्ततीस अंसा य ।
चणउवि ' - पण-सय-हिवा, जादि मुहुलेण कित्तिया रिक्खा ||४८३||
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५२८५५४९ I
प्रथं - कृतिका नक्षत्र एक मुहूर्त में पाँच हजार दो सौ पचासी योजन और पांच सौ चौरानबैसे भाजित सैंतीस भाग अधिक गमन करता है ||४८३ ||
विशेषार्थ - कृत्तिका नक्षत्र चन्द्रकी छठी वीथीमें भ्रमण करता है । इस वीथीको परिधि का प्रमाण ३१६२४०१ई योजन है । इसमें कृत्तिका का एक मुहूर्तका गमनक्षेत्र (७१२४३६७) = ५२८५६४ योजन प्राप्त होता है ।
चित्रा और रोहिणीका एक मुहूर्त का गमन क्षेत्र
पंच सहस्सा दुसया, अट्ठासीदी य जोयणा अहिया ।
चिताओ रोहिणीश्रो, जसि मुहुत्ते पत्तेषकं ॥ ४६४ ||
अदिरेगस्स पमाणं, फलानो सग-सत्त-ति-ण-दुगमेत्ता ।
अंक कमे तह हारो, ल-छक्क-रव-एकक-दुग-माणो ।।४८५॥
५२८८ । ३९३७७ ।
अर्थ - चित्रा और रोहिणीमेंसे प्रत्येक नक्षत्र एक मुहूर्त में पांच हजार दो सौ अठासी योजनसे अधिक जाता है। यहाँ अधिकताका प्रमाण अंक क्रमसे शून्य, छह, नौ, एक और दो अर्थात् इक्कीस हजार नौ सौ साठसे भाजित बीस हजार तीन सौ सतत्तर कला है ।।४८४-४६५।।
१. व. ब. क. ज. चउरा उदोपणय ।