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________________ ३७८ ] तिलोयपण्णत्ती 1 गाथा : ४००-४६२ विशेषार्थ-प्रत्येक परिधि में १०९८०० गगनखण्डों पर भ्रमण करनेमें नक्षत्रों को ( BFx= ) ५९| मुहूर्त लगते हैं। चन्द्रकी प्रथम वोथी में स्थित १२ नक्षत्रोंका एक मुहर्तका गमन क्षेत्र - सवणादि-अढ-माणि, अभिजिस्सादोश्रो उत्तरा-पुरुया । वचंति मुहुत्तेणं, बावपण-सयाणि अहिय-पणसट्ठी ॥४०॥ अहिय-प्पमारणमंसा, अद्वरस-सहस्स-सु-सय-सेसट्ठो। इगिवीस-साहस्साणि, णव - सय - सट्ठी हरे हारो ॥४८१॥ अर्प-श्रवणादिक पाठ, अभिजित्, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र एक मुहूर्त में पांच हजार दो सौ पैंसठ योजन से अधिक गमन करते हैं । यहाँ अधिकता का प्रमाण इक्कीस हजार नौ सौ साठ भागोंमेंसे अठारह हजार दो सौ तिरेसठ भाग प्रमाण है ।।४८०-४८१॥ विशेषार्थ - चन्द्रको प्रथम वीथीमें श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पू० भा०, उ• भा०, रेवती, अश्विनी, भरणी, अभिजित्, स्वाति, पू० फा० और उ० फा० ये १२ नक्षत्र संचार करते हैं। प्रथम वीथी की परिधि का प्रमाण ३१५०८९ योजन है । जबकि नक्षत्र ५६ = 1 मुहूर्तों में ३१५०८९ योजन संचार करते हैं, तब एक मुहूर्तमें कितने योजन गमन करेंगे? इसप्रकार राशिक करने पर ( 1 )=५२६५३%80 योजन प्राप्त होते हैं । यही चन्द्र की प्रथम वीथी में नक्षत्रों के एक मुहूर्त के गमन क्षेत्र का प्रमाण है । चन्द्र की तीसरी वीथी स्थित नक्षत्रों का गमन क्षेत्रवचंति मुहुत्तेणं, पुणवसु'-मघा ति-सत्त-दुग-पंचा। अंक-कमे जोयणया, तिय-णभ-घउ-एक्क-एक्क-कला ॥४२॥ ५२७३ II मर्थपुनर्वसु और मघा नक्षत्र अंक-क्रमसे तीन, सात, दो और पांच अर्थात् पाँच हजार दो सौ तिहत्तर योजन और ग्यारह हजार चार सौ तीन भाग अधिक एक मुहूर्तमें गमन करते हैं ॥४८२।। १.द.ब. क. ज. पुम्बाउ ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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