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गाथा : ४५९ ४६० ] सत्तमो महाहियारो
[ ३६९ ___गाथा ४५६ को संदृष्टिके प्रारम्भमें जो 11 । १ । १७६ दिये गये हैं उनका अर्थ यह है
जबकि १५० योजन दिनगतिमें १ उदयस्थान होता है तब वेदिकाके व्याससे रहित जम्बूद्वीपके ( १८० - ४) १७६ योजन में कितने उदय स्थान प्राप्त होंगे? इसप्रकार राशिक करने पर
४६१ = 1983 = ६३३७ उदय अंश प्राप्त हुए। जिनको संदृष्टि गाथा ४५७ के नीचे है। गा० ४५६ को संदृष्टिका दूसरा अश 12 : ४ । है । अर्थात् जति : सोलन खेल में एक उदय स्थान प्राप्त होता है, तब वेदी-व्यास के ४ योजनोंमें कितने उदय स्थान होंगे? इसप्रकार पैराशिक करनेपरxx= २३४ अर्थात् १० उदय अंश प्राप्त होते हैं; जिनकी संदृष्टि भी गाथा ४५७ के नीचे है।
गाथा ४५६ की संदृष्टिका अन्तिम अंश ११ । १ । ११ । है । अर्थात् जबकि योजन क्षेत्रका १ उदय स्थान है तब लवरणसमुद्रके चारक्षेत्र १ ( ३३०) योजन क्षेत्रमें कितने उदयस्थान होंगे? इसप्रकार राशिक करनेपर -२३ अर्थात् ११८ उदय अंश प्राप्त हुए, जिनकी संदृष्टि गाथा ४५८ के नीचे दी गई है।
उपयुक्त तीनों राशियोंको जोड़नेपर (६३१ + १४+११८38)-१८२ उदयस्थान और 138 उदय अंश प्राप्त होते हैं । जबकि १ उदय स्थानका योजन क्षेत्र होता है तब 28 उदय अंशोंका कितना क्षेत्र होगा? इसप्रकार ( 1 3 )- योजन क्षेत्र प्राप्त होता है । इस क्षेत्रके उदय स्थान निकालने पर ( 43xXF-) अर्थात् १ उदयस्थान प्राप्त होते हैं। इन्हें उपयुक्त उदय-स्थानों में जोड़ देनेपर ( १८२+१%)=१८३ॐ अर्थात् ४८ कला अधिक १८३ उदय स्थान प्राप्त होते हैं । उदय स्थानोंका विशद विवेचन त्रिलोकसार गाथा ३९६ की टीकासे ज्ञातव्य है ।
ग्रहोंका निरूपणअट्ठासीदि-गहाणं, एक्कं चिय होवि एत्थ चारखिदी।
तज्जोगो बोहोत्रो, पडिवीहिं होंति परिहीनो ॥४५॥ अपं- यहाँ अठासी ग्रहों का एक ही चारक्षेत्र है, जहाँ प्रत्येक वीथी में उसके योग्य वीथियाँ और परिधियां हैं ॥४५९॥
परिहीस ते चरंते, ताणं फणयाचलस्स विच्चालं । अण्णं पि पुथ्व-भणिवं, काल-वसादो पणठ्ठमुवएसं ॥४६०॥
गहाणं परवणा समत्ता।