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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : ४६१-४६४
अर्थ – ग्रह इन परिधियों में संचार करते हैं । इनका मेरु पर्वतसे अन्तराल तथा और मी जो पूर्व में कहा जा चुका है उसका उपदेश कालवश नष्ट हो चुका है ॥४६० ॥
ग्रहों की प्ररूपणा समाप्त हुई
हैं ॥४६१।
चन्द्र के पन्द्रह पथों में से किस-किस पथमें कौन-कौन नक्षत्र संचार करते हैं ? उनका विवेचन
ससिणो पण्णरसाण, बीहोणं ताप होंति मज्भम्मि ।
घट्ट चिय वीहीग्रो अट्ठावीसाण रिक्खाणं ॥। ४६१।।
अर्थ - चन्द्रकी पन्द्रह गलियोंके मध्य में अट्ठाईस नक्षत्रोंको आठ ही गलियाँ होती
व प्रभिजिप्पहुदीणं, सावी पुव्वाश्रो उत्तराओ वि ।
इय वारस रिक्खाणि चंदस्स चरंति पढम पहे ॥ ४६२ ||
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यथा-
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अर्थ - अभिजित् आदि नौ, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी ये बारह नक्षत्र चन्द्रके प्रथम पथमें संचार करते हैं ॥ ४६२ ॥
तदिए पुणन्वसू मघ, सत्तमए रोहणी य चित्ताओ ।
छट्टम्मि कित्तियाओ, तह य विसाहाम्रो श्रमो ॥ ४६३ ॥
अर्थ - चन्द्र के तृतीय पथ में पुनर्वसु और मघा, सातवें में रोहिणी और चित्रा, छठे में कृतिका तथा आठवें पथ में विशाखा नक्षत्र संचार करता है ||४६३ ||
बसमे अणुराहाओ, जेट्ठा एक्कारसम्म पण्णरसे ।
हत्थो मूलादितियं, मिगसिर दुग-पुस्स-असिलेसा ||४६४ ॥
अर्थ- दसवें पथमें अनुराधा ग्यारहवें में ज्येष्ठा तथा पन्द्रहवें मार्ग में हस्त, मूलादि तीन ( मूल, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा), मृगशीर्षा, आर्द्रा, पुष्य और आश्लेषा ये आठ नक्षत्र संचार करते हैं ।। ४६४ ।।
विशेषार्थ चन्द्रकी १५ गलियाँ हैं । उनमें से ८ गलियों में २८ नक्षत्र संचार करते हैं ।
(१) चन्द्रकी प्रथम वोथी में अभिजित् श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी । (२) तृतीय वीथीमें