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तिलोय पण्णत्ती
बाहिर पहादु श्रादिम-पहम्मि दुमणिस्स श्रागमण-काले ।
पुव्युत्त दिणणिसाम्रो, हवंति अहियाओ ऊणाश्री ||४५५ ॥
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[ गाथा : ४५५-४५८
-सूर्यके बाह्य पथसे आदि पथकी ओर आते समय पूर्वोक्त दिन एवं रात्रि क्रमश: उत्तरोत्तर अधिक और कम अर्थात् उत्तरोत्तर दिन अधिक तथा रात्रि कम होती है ||४५५ || सूर्य के उदय-स्थानोंका निरूपण
मत्तंड दिर-गढीए, एक्कं चिय लब्भवे उदय ठाणं । एवं दोघे बेबी लवणसमुद्देसु प्राणेज्ज ।।४५६ ॥
७ ।। १०६ । १७ । १ । ४ । १७० । १ । २६१७८ ।
अर्थ- सूर्यकी दिनगति में एक ही उदयस्थान लब्ध होता है । इसप्रकार द्वीप, बेदी और लवण समुद्र में उदय स्थानोंके प्रमारणको ले आना चाहिए ।।४५६ ||
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से दीये तेसड्डी, छव्वीसंसा ख reet fear
aate, कलाओ
६३ । २६० | १ |
श्रयं -वे उदय स्थान एक सौ सत्तरसे भाजित छब्बीस भाग अधिक तिरेसठ ( ६३२०४ ) जम्बूद्वीपमें और चौहत्तरकला अधिक केवल एक ( १२ ) उदयस्थान उसकी बेदी के ऊपर है ।। ४५७ ।।
सस एकक - हिदा ।
चहत्तरी होंति ॥ ४५७ ॥
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श्रद्धारसूत्तर- सवं, लवणसमुद्दम्मि तेत्तिय कलाश्रो ।
एदे मिलिदा उदया, तेसीदि-सदाणि अद्भुताल-कला ॥४५८ ॥
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अर्थ - लवणसमुदमें उतनी ( ११८ ) ही कलाओं से अधिक एक सौ अठारह (११८ ) उदयस्थान हैं । ये सब उदयस्थान मिलकर अड़तालीस कलाओं से अधिक एक सौ तेरासी ( १०३ ) हैं ।। ४५८ ।।
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विशेषार्थ - जम्बूद्वीप में सूर्यके चार क्षेत्रका प्रमाण १८० योजन है । जम्बूद्वीपकी वेदीका व्यास ४ योजन है और लवण समुद्रके चार क्षेत्रका प्रमाण ३३०६-०८ योजन है । सूर्यवीथीका प्रमाण योजन है और एक वीथीसे दूसरी बीधीके अन्तरालका प्रमाण २ योजन है । यह २ + योजन सूर्यके प्रतिदिनका गमनक्षेत्र है ।
अर्थात् १
१. ब. २१ । ।, ब, ६३ । १० ।