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________________ ३६८ ] तिलोय पण्णत्ती बाहिर पहादु श्रादिम-पहम्मि दुमणिस्स श्रागमण-काले । पुव्युत्त दिणणिसाम्रो, हवंति अहियाओ ऊणाश्री ||४५५ ॥ - [ गाथा : ४५५-४५८ -सूर्यके बाह्य पथसे आदि पथकी ओर आते समय पूर्वोक्त दिन एवं रात्रि क्रमश: उत्तरोत्तर अधिक और कम अर्थात् उत्तरोत्तर दिन अधिक तथा रात्रि कम होती है ||४५५ || सूर्य के उदय-स्थानोंका निरूपण मत्तंड दिर-गढीए, एक्कं चिय लब्भवे उदय ठाणं । एवं दोघे बेबी लवणसमुद्देसु प्राणेज्ज ।।४५६ ॥ ७ ।। १०६ । १७ । १ । ४ । १७० । १ । २६१७८ । अर्थ- सूर्यकी दिनगति में एक ही उदयस्थान लब्ध होता है । इसप्रकार द्वीप, बेदी और लवण समुद्र में उदय स्थानोंके प्रमारणको ले आना चाहिए ।।४५६ || - से दीये तेसड्डी, छव्वीसंसा ख reet fear aate, कलाओ ६३ । २६० | १ | श्रयं -वे उदय स्थान एक सौ सत्तरसे भाजित छब्बीस भाग अधिक तिरेसठ ( ६३२०४ ) जम्बूद्वीपमें और चौहत्तरकला अधिक केवल एक ( १२ ) उदयस्थान उसकी बेदी के ऊपर है ।। ४५७ ।। सस एकक - हिदा । चहत्तरी होंति ॥ ४५७ ॥ - श्रद्धारसूत्तर- सवं, लवणसमुद्दम्मि तेत्तिय कलाश्रो । एदे मिलिदा उदया, तेसीदि-सदाणि अद्भुताल-कला ॥४५८ ॥ 88513361 अर्थ - लवणसमुदमें उतनी ( ११८ ) ही कलाओं से अधिक एक सौ अठारह (११८ ) उदयस्थान हैं । ये सब उदयस्थान मिलकर अड़तालीस कलाओं से अधिक एक सौ तेरासी ( १०३ ) हैं ।। ४५८ ।। I विशेषार्थ - जम्बूद्वीप में सूर्यके चार क्षेत्रका प्रमाण १८० योजन है । जम्बूद्वीपकी वेदीका व्यास ४ योजन है और लवण समुद्रके चार क्षेत्रका प्रमाण ३३०६-०८ योजन है । सूर्यवीथीका प्रमाण योजन है और एक वीथीसे दूसरी बीधीके अन्तरालका प्रमाण २ योजन है । यह २ + योजन सूर्यके प्रतिदिनका गमनक्षेत्र है । अर्थात् १ १. ब. २१ । ।, ब, ६३ । १० ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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