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सत्तमो महाहियारो
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मेरी समझ से इन दोनों में कथन भेद है, भाव या विषय भेद नहीं है, फिर भी विद्वानों द्वारा
गाथा : ४३६-४३८ ]
विचारणीय है ।
ऐरावत क्षेत्र के चक्रवर्ती द्वारा सूर्य स्थित जिनबिम्ब दर्शन
उवरिम्मि गील- गिरिणो, तेत्तियमाणेण पढम-मग्ग-गदो । एरायदम्म विजए, चक्की वेक्वंति इदर - रवि' ।।४३६ ।।
अर्थ - ऐरावत क्षेत्र के चत्रवर्ती उतने ही योजन प्रमाण ( ५५७४ यो० ) नील पर्वत के ऊपर प्रथम मार्ग स्थित बोलते है
प्रथम पथमें स्थित सूर्यके भरतक्षेत्र में उदित होनेपर क्षेमा आदि सोलह क्षेत्रों में रात्रि दिनका विभाग
ति दुगेक्क मुहत्ताण, खेमादी-तिय पुरम्मि अहियाणि ।
किचूण एक्क े णाली, रत्ती य अरिट्ठ जयरम्मि ॥। ४३७ ॥ ॥
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भु ३ । २ । १ । णालि १ ।
अर्थ - ( प्रथम पथ स्थित सूर्यके भरतक्षेत्र में उदित होते समय ) क्षेमा, क्षेमपुरी और अरिष्टा इन तीन पुरोंमें क्रमश: कुछ अधिक तीन मुहूर्त, दो मुहूर्त और एक मुहूर्त तथा अरिष्टपुरी में कुछ कम एक नाली ( घड़ी ) प्रमाण रात्रि होती है ।।४३७ ||
विशेषार्थ - प्रथम वीथी में स्थित सूर्य निषधकुलाचलके ऊपर आता हुआ जब भरतक्षेत्र में उदित होता है उस समय पूर्व - विदेह में सोता महानदी के उत्तर तट स्थित क्षेमा नगरीमें कुछ अधिक ३ मुहूर्त ( कुछ अधिक २ घंटे, २४ मिनिट ) रात्रि हो जाती है । उसी समय क्षेमपुरी में कुछ अधिक २ मुहूर्त ( १ घंटा, ३६ मि० से कुछ अधिक ), अरिष्टा में कुछ अधिक १ मुहूर्त ( ४८ मि० से कुछ अधिक ) और अरिष्टपुरी में कुछ कम एक नाली ( २४ मिनिटसे कुछ कम ) रात्रि हो
जाती है ।
साहे खम्मपुरीए प्रत्यमणं होदि मंजुस पुरपि ।
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श्रय रहम धिय-घलियं, प्रोसहिय-णयरम्मि साहिय मुहुर्त ॥४३८ ॥
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अर्थ – उसी समय खड्गपुरी में सूर्यास्त, मंजूषपुर में एक नालीसे कुछ अधिक अपराह्न और औषधिपुर में वह ( अपराह्न ) मुहूर्त से अधिक होता है ||४३८ ||
१. व. क. ज. दुक्खति तिथरवि, ब. देवखंति रयरवि । २. ब. किचूर्ण एक्का गाली | ३. द. ब. क. ज. मुलिया ।