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________________ सतमो महाहियारो हरिवर्ष क्षेत्र के बारका प्रमाण तिय-जोयण - लक्खाणि, दस य सहस्साणि ऊण- घोसेहि । अवहरिदाई भणिदं हरिवरिस सरस्स परिमाणं ॥ ४२५ ॥ गाथा : ४२५-४२८ ] 310000 98 } - अर्थ - हरिवर्ष क्षेत्र के बाराका प्रमाण उन्नीससे भाजित तीन लाख दस हजार (0) योजन कहा गया है ॥। ४२५ ।। विशेषार्थ - ति० प० चतुर्थाधिकार गाथा १७६१ के अनुसार भरत क्षेत्रके बाण ( 19 ) को ३१ से गुणित करने पर लवणोदधिके तटसे हरिवर्ष क्षेत्रके बाणका प्रमाण (३१ ) = ३००० योजन प्राप्त होता है । 0000 सूर्यके प्रथमपधसे हरिवर्ष क्षेत्र के बाराका प्रमाण– तम्मर सोहेज्जसु सोदी-समहिय सघं च जं सेसं । सो आदिम-गायो, बाणो हरिवरिस विजयस्स ॥४२६ ॥ - - १८० । अर्थ - इस ( बारा ) में से एक सौ अस्सी ( जम्बूद्वीप के चारक्षेत्रका प्रमाण १८० ) योजन कम कर देनेपर जो शेष रहे उतना प्रथम मार्गेसे हरिवर्ष क्षेत्रका बाण होता है ।। ४२६ ।। [ ३५६ विशेषार्थ - ( हरिक्षेत्रका बाप १०० ) [2] ३४२० 20 ( १८० यो० ज० द्वी० का चारक्षेत्र ) ०६८० योजन अभ्यन्तर पथसे हरिवर्ष क्षेत्र के बाराका प्रमारण । तिय-जोपण - लक्खाणि, छच्च सहस्वाणि पण-सयाणि पि । सीदि जुदाणि श्रादिम मग्गादो तस्स परिमाणं ||४२७|| ०६८ । अर्थ - आदिम मार्गसे उस हरिवर्ष क्षेत्रके बाणका प्रमाण उन्नीससे भाजित तीन लाख छह - हजार पांचसौ लस्सी ( ०६००० ) योजन होता है ।। ४२७ ।। प्रथम पथका सूची- व्यास - णवणउवि सहसाणि, छस्सय चत्ताल-जोयणाणि च । परिमाणं णादव्यं, श्रादिम ९९६४० । मग्गस्स सूईए ॥ ४२८ ॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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