________________
गाथा : ४२० - ४२१ ]
सत्तमो महाहियारो
[ ३५७
शून्य, पाँच, दो, शून्य, छह, नौ, एक और दो, इन अंकोंके क्रमसे इक्कीस सौ छ्यानबे करोड़ दो लाख पचास हजार योजन होता है ||४१६ ४१६ ॥
विशेषार्थ - लवणोदधिके छठे भागकी ( परिधि निकालने की प्रक्रिया गा० २६५ के विशेषार्थ में द्रष्टव्य है ) परिधि ५२७०४६ योजन है। इसको दोनों पार्श्व भागोंके छठे भागसे अर्थात् १२ से भाजित कर प्राप्त लब्धमें लवणोदधिके सूची - ध्यास ५ लाखका गुणा करनेपर आतप एवं तिमिर क्षेत्रों का क्षेत्रफल प्राप्त होता है ।
यथा - ( परिधि ५२७०४६ ) ÷ १२ = ४३९२०३=७०४१ ८७.४१५००००० २१९६०२५०००० वर्ग योजन आतप एवं तिमिर क्षेत्र का क्षेत्रफल है ।
एदे ति गुणिय भजिवं, बसेहि एक्कादव- विदीए फलं । सेत्तिय दु-ति-भाग- हवं, होदि फलं एक्क-तम-खेतं ॥ ४२० ॥
६५८८०७५००० | ति ४३६२०५०००० ।
श्रर्थ- - इस ( क्षेत्रफल के प्रमाण ) को तिगुना कर दसका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना एक आतप क्षेत्रका क्षेत्रफल होता है । इस प्रातप - क्षेत्रफल प्रमारण के तीन भागों में से दो भाग प्रमाण एक तमक्षेत्रका क्षेत्रफल होता है ||४२०॥
S
एक आतपक्षेत्र और एक तिमिर क्षेत्रका क्षेत्रफल -
-
विशेषार्थ - एक आतप और एक तिमिर क्षेत्र का क्षेत्रफल प्राप्त करनेके लिए सूत्र एवं उनको प्रक्रिया इस प्रकार है
( १ ) एक श्राप क्षेत्रका क्षेत्रफल =
२१९६०२५००००
१
३
X -=६५८८०७५००० योजन । १०
(२} एक तम क्षेत्रका क्षेत्रफल = एक प्रातप क्षेत्रका क्षेत्रफल २
१
३
X = ४३९२०५०००० योजन ।
६५८८०७५०००
१
तिमिर और आतप क्षेत्रका क्षेत्रफल ३ १०
x
१
दोनों सूर्य सम्बन्धी आतप एवं तम का क्षेत्रफल -
एवं श्रावन तिमिर वखेचफलं एक्क-तिव्यकिरणम्मि ।
दोसु विरोचणेसु णादध्वं दुगुण पुष्व परिमाणं ॥ ४२१॥
}
-
-