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तिलोथपण्णत्ती
[ गाथा: ४१५-४१९
पर्य - सूर्यके बाह्य मार्गेमें स्थित होनेपर लवणोदधिके छठे भागमें तम क्षेत्र तीन, एक, एक, आठ, पाँच और एक, इन अंकोंके क्रमसे एक लाख अट्ठावन हजार एक सौ तेरह योजन और चार भाग ( १५ = ११३ योजन ) प्रमाण रहता है || ४१४॥
दोनों सूर्यो तिमिर क्षेत्रका प्रमाण
एदाणं तिमिराणं, खेत्तारिंग होंति एक्क भाणुम्मि । दुगुणिद- परिमाणाणि, दोसु पि सहस्स-किरणे ||४१५ ॥
अर्थ - एक सूर्यके ये ( इतने ) तिमिर-क्षेत्र होते हैं। दोनों सूर्यके होते हुए इन्हें द्विगुणित प्रमाण ( दूने ) जानना चाहिए ।।
तिमिर क्षेत्रकी हानि - वृद्धिका क्रम
पदम - पहादो बाहिर पम्मि दिवसा हिवल्स गमणेसु ।
खट्ठेति तिमिर खेत्ता, श्रागमणेसु च परियंति ।।४१६ ||
अर्थ - दिवसा धिप ( सूर्य ) के प्रथम पथसे बाह्य पथकी ओर गमन करनेपर तिमिरक्षेत्र वृद्धिको और आगमन कालमें हानिको प्राप्त होते हैं ।।४१६।।
आतप और तिमिर क्षेत्रोंका क्षेत्रफल -
एवं सव्व - पसु भरिणयं तिमिर-क्लिदीण परिमाणं ।
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एत्तो प्रादव- तिमिर वखेत्तं फलाइ परुवेमो ||४१७ ।।
अर्थ – इस प्रकार सब पथों में तिमिर-क्षेत्रों का प्रमाण कह दिया है । अब यहाँसे आगे आतप और तिमिरका क्षेत्रफल कहते हैं || ४१७ ॥
लवणंबु - रासि वासच्छ्टुम-भागस्स परिहि खारसमे ।
परण- लक्खह गुणिदे, तिमिराव व क्षेत्तफल-मारखं ||४१८ ||
चउ-ठाणेसु सुण्णा, पंच-वुणभ- छक्क णवय एकक -दुगा । अंक - कमे जोयणया, तं खेत्तफलस्स परिमाणं ।।४१६ ॥
२१९६०२५०००० |
अर्थ - लवण समुद्र के विस्तारके छ भागकी परिधिके बारहवें भागको पाँच लाखसे गुणा करनेपर तिमिर और आतप क्षेत्रका क्षेत्रफल निकल आता है। उस क्षेत्रफलका प्रमाण चार स्थानों में