SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपण्णत्ती सूर्यके बाह्य पथमें स्थित रहते प्रथम बीथी में तम क्षेत्रका प्रमाण चणउदि सहस्सा परण-सयाणि छब्बीस जोयणा श्रंसा । सतय यस पहिला, बहि-पह तयणम्मि पढम पह तिमिरं ॥ ४०८ ॥ ६४५२६ । ७ । अर्थ- सूर्य के बाह्य पथमें स्थित होनेपर प्रथम पथमें तिमिर-क्षेत्र चौरानबे हजार पाँच सौ छब्बीस योजन और दससे भाजित सात भाग ( ६४५२६० योजन ) प्रमाण रहता है ||४०८ ॥ द्वितीय वीथी में तम क्षेत्रका प्रमाण ३५४ ] चणउदि सहस्सा पण-सयाणि इगितोस जोवणा श्रंसा । सारो पंच - विहा, बहि-पह' भाणुम्मि बिदिय पह- तिमिरं ।।४०६ ।। ९४५३१ । ¥ । अर्थ- सूर्य के बाह्य मार्ग में स्थित होनेपर द्वितीय पथमें तिमिर क्षेत्र चौरानबे हजार पाँच -- सौ इकतीस योजन और पाँचसे भाजित चार भाग ( ९४५३१ । ६ योजन ) प्रमाण रहता है ॥४६॥ तृतीय बीथी में सम क्षेत्रका प्रमाण चणउदि सहस्सा, पण सयाणि सगतीस जोयणा सा । तदिय-पह - तिमिर- खेत्तं, बहि मग्ग ठिवे सहस्सकरे ॥ ४१० ॥ - [ गाथा : ४०८-४११ - ९४५३७ । ५ । अयं सूर्य के बाह्य मार्ग में स्थित होनेपर तृतीय पथ में तिमिर क्ष ेत्र चौरानबे हजार पाँच ९४५४२ । ÷ । एवं मज्झिम- मग्गाइल- मगं ति णेषव्यं । सौ सैंतीस योजन और एक भाग ( ९४५३७ योजन ) प्रमाण रहता है ।।४१० ।। चतुर्थ वीथी में तम क्षेत्र - चणडबि सहस्सा परण-सयाणि बाबाल- जोयणा ति-कला । दस - पवित्ता बहि-पह विद-तवणे तुरिम मग्ग - तमं ॥ ४११ ॥ १. द. ब. क. ज. तम । २. द, ब. क. ज. तावं । -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy