________________
गाथा : ४०३ - ४०७ ]
सत्तमो महाहियारो
अट्ठासहि सहस्सा, एक्कावण्णं तिमिरं
ठावण्णा य जोयणा सा ।
रिट्ठपुरी मज्झ पणिधी ||४०३ ।।
-
-
६८०५८ ।१
मथं - अरिष्टपुरीके मध्य - प्रणिधिभाग में तिमिरक्षेत्र अड़सठ हजार अट्ठावन योजन और इक्यावन भाग ( ६८०५८३ योजन ) प्रमाण रहता है ||४०३ ||
बाहतरि सहस्सा, चउ-सय-चडणउदि जोयणा श्रंसा ।
पणुतीसं खग्गाए मज्झिम-पणिधीए तिमिर खिदी ||४०४ ॥
७२४६४ । १५ ।
अर्थ – खड्गा नगरीके मध्यम प्रणिधिभाग में तिमिर-क्षेत्र बहत्तर हजार चार सौ चौरानबे योजन और पैंतीस भाग ( ७२४९४६६ योजन ) प्रमाए रहता है ||४०४ ।।
सत्तर सहस्सा, खस्सय इगिवाल जोवणाणि कला | एक्कासट्ठी मंजुस जयरी पणिहीए तम खेत्तं ॥४०५॥
-
[ ३५३
७७६४१ । ३ ।
अर्थ- मंजूषानगरी के प्रणिधिभाग में तम क्षेत्र सतत्तर हजार छह सौ इकतालीस योजन और इकसठ कला ( ७७६४ ९ ६) योजन ) रहता है ||४०५ ||
-
बासीदि-सहस्साणि, सप्तप्तरि जोधणा कलाश्रो वि ।
पंचत्तालं ओसहि पुरीए बाहिर पह-ट्ठिदक्कम्म ||४०६ ॥
८२०७७ । ४५ ।
अर्थ- सूर्य के बाह्य मार्ग में स्थित होनेपर औषधिपुरीमें तम क्षेत्र बयासी हजार सतत्तर योजन और पैंतालीस कला ( ८२०७७१ योजन ) प्रमाण रहता है ||४०६ ॥
सासोदि सहस्सा, बे-सय- चउबीस जोयणा श्रंसा ।
एक्कत्तरीय 'तमिस - परिधीए पुंडरिंगिणी - जयरे ॥ ४०७ ॥
८७२२४ । । ।
अर्थ - पुण्डरीकिणी नगरीके प्रणिविभाग में तिमिर-क्षेत्र सतासी हजार दो सौ चौबोस योजन और इकहत्तर भाग ( ८७२२४६२ योजन ) प्रमाण रहता है || ४०७ ॥
१. ६. ब. क. . तिमिस ।