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तिलोयपण्णसी
[ गाया : ३९९-४०२ विशेषार्थ-बाल पथमें रात्रिका प्रमाण १८ मुहूर्त है इसमें ६० मुहूर्ताका भाग देनेपर (३) प्राप्त होते हैं । विवक्षित परिधिके प्रमाणमें ३ का गुणाकर १० का भाग देनेपर तम-क्षेत्र का प्रमाण प्राप्त होता है। सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर मेरु आदि की परिधियों में
तम-क्षेत्रका प्रमाणणव य सहस्सा चउ-सय, छासोदी जोयणाणि तिणि कला। पंच - हिवा मेर - तमं, बाहिर - मग्गे ठिवे तवणे ॥३६॥
९४८६ ।। अर्य-सूर्यके बाह्य मार्ग में स्थित रहनेपर मेरुके ऊपर तम-क्षेत्र नौ हजार चार सौ छयासी योजन और पाचसे भाजित तीन कला ( ९४८६६ योजन ) प्रमाण रहता है ।।३९९॥
तेवण्ण-सहस्साणि, ति-सया पडवीस-जोयणा ति-कला। सोलस-हिदा यसमा - मज्झिम - पणधीए तम-लेत्तं ।।४००॥
५३३२८ ।।। अर्थ-क्षेमा नगरीकै मध्यम प्रणिधिभागमें तम-क्षेत्र तिरेपन हजार तीन सौ अट्ठाईस योजन और सोलहसे भाजित तीन कला ( ५३३२८योजन ) प्रमाण रहता है ॥४०॥
अट्ठावण्ण-सहस्सा, चत-सय-पणहत्तरी य जोधणया । एक्कत्ताल - कलाओ, सीदि - हिवा खेम - णयरीए ॥४०१॥
५८४७५ । । प्रर्य-क्षेमपुरी में तम-क्षेत्र अट्ठावन हजार चार सौ पचहत्तर योजन और प्रस्सीसे भाजित इकतालीस कला ( ५८४७५३ योजन ) प्रमाण है ।।४०१।।
बासद्वि-सहस्सा णव-सयाणि एक्करस जोयणा भागा। पणवीस सीवि-भजिदा, रिठाए मझ-पणिषि-तमं ॥४०२॥
प्रपं-अरिष्टा नगरीके मध्य प्रणिधिभागमें तम-क्षेत्र बासठ हजार नौ सौ ग्यारह योजन पौर अस्सीसे भाजित पच्चीस भाग ( ६२९११परे योजन ) प्रमाण रहता है ।।४०२।।