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________________ गापा ३१६-३९० ] सत्तनी महाहियारो [ ३५१ अर्थ- सूर्यके द्वितीय मार्ग में स्थित होनेपर लवणोदधिके छठे भाग में तिमिरक्षेत्र सात, नौ, छह, पाँच, शून्य और एक इन अंकों के क्रमसे एक लाख पांच हजार छह सौ सप्तानये योजन और एक हजार आठ सौ सीससे भाजित तीन सौ बहत्तर भाग अधिक है ।। ३९५ । ४१०५६९७योजन तम ( लवणसमुद्र के छठे भाग की परिधि - क्षत्रका प्रमाण है | शेष परिधियों में तम क्ष ेत्र - एवं सेस पहेतु, वीहि पडि जामिणी मुहुचाणि । ठविकणाणेज्ज तमं, छत्रकोणिय दु-सय-परिहीसु ॥ ३६६ ॥ · १९४ | अर्थ--- इस प्रकार शेष पथोंमेंसे प्रत्येक बीथी में रात्रि मुहूतोंको स्थापित करके छह कम दो सौ ( १९४ ) परिधियों में तिमिर-क्ष ेत्र ज्ञात कर लेना चाहिए ।। ३९६ ॥ नोट - विशेष के लिए गाथा ३४५ का विशेषार्थे द्रष्टव्य है । सूर्यके बाह्यपत्र में स्थित होनेपर तम क्षेत्रका प्रमाण सव्व-परिही ति, अट्ठरस- मुहत्तयाणि रविबिले' । बहि-यह- ठिमि एवं धरिकण भणामि तम- खेसं ॥ ३६७॥ अर्थ- सूर्य बिम्ब के बाह्य पथमें स्थित होनेपर सब परिधियों में अठारह मुहूर्त -प्रमाण रात्रि www है, इसका प्राश्रय करके तम क्षेत्रका वर्णन करता हूँ ।। ३९७ ।। सूर्यके बाह्य पथमें स्थित रहते विवक्षित परिधि में तम क्षेत्र प्राप्त करने की विधि - इच्छिय-परिय-रासि, तिगुणं काढूण दस-हिदे लद्ध' । होदि तिमिरस्स खेत्तं, बाहिर - मग्ग - हिबे सूरे ।। ३६८ || ,%! अर्थ- इच्छित परिधि - राशिको तिगुरणा करके दसका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना सूर्यके बाह्य मार्ग में स्थित होनेपर विवक्षित परिधि में तिमिर-क्षेत्र होता है ।। ३९८ ।। १. द. व. का. ज. दिवं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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