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________________ ३५० ] तिलोयपण्णत्तो [ गाथा ! ३९३-३९५ (तृतीय पथको परिधि=141४)xy = "१५२५४ = ६३१९६३:३४ योजन तम-क्षेत्र है। इसप्रकार मध्यम मार्ग पर्यन्त ले जाना चाहिए । ____ मन यो तम-क्षेत्रका प्रमाणतेसद्वि-सहस्सा पण-सयाणि तेरस जोयरणा अंसा । घउवाल-जुवट्ठ-सया, विदिय-पहक्कम्मि मज्म-मग्ग-तमं ॥३६॥ ६३५१३ । १४ । एवं दुचरिम-मम्गंतं' णेदव्यं । प्रर्य-सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित होनेपर मध्यम मार्गमें तम-क्षेत्र तिरेसठ हजार पाँच सौ तेरह योजन और पाठ सो चवालीस भाग अधिक रहता है ॥३६३।। ( मध्यम पथकी परिधि = 1 )xgr= N ६३५१३१११ योजन तम-क्षेत्रका प्रमाण है। इसप्रकार विचरममार्ग पर्यन्त ले जाना चाहिए। बाह्य पथ में तम-क्षेत्रछ-तिय-अट्ठ-ति-छक्का, अंक-कमे गवय-सत्त-छक्केसा। पंचक्क-णव-विहत्ता, विदिय-पहपकम्मि बाहिरे तिमिरं ॥३४॥ ६३८३६ I 11 प्रर्ष-सूर्यके द्वितीय मार्गमें स्थित होने पर बाह्य पथमें तिमिर-सत्र छह, तीन, पाठ, तीन और छह, इन अंकोंके क्रमसे तिरेसठ हजार आठ सौ छत्तीस योजन और नौ सौ पन्द्रहसे भाजित छह सौ उन्यासी भाग अधिक है ।।३९४।।। (बाह्य क्षेत्रकी परिधि= )xf= = ६३८३६ योजन तमक्षेत्र का प्रमाण है। लवणोदधिके छठे भागमें तम-क्षेत्रसत्त-गव-छपक-पण-णभ-एक्कंक-कमेण दुग-सग-तियंसा । णभ-तिय-प्रदुषक-हिवा, लवणोदहि - छ? - भागतं ।।३६५॥ १०५६९७ । १७ 1.६.ब.क.ज. मागो ति।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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