SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२ | तिलोयपण्णत्ती चवण्ण- सहस्सा सग-सद्याणि श्रट्ठरस-जोयणा अंसा । पण्णरस प्रोसहोपुर- बहुमज्झिम- पणिधि तिमिर खिदी ॥ ३७२ ॥ ५४७१८ । । । । अर्थ - श्रोषधपुरकी बहुमध्यप्रणिधिमें तिमिरक्षेत्र चौवन हजार सात सौ अठारह योजन और पन्द्रह भाग-प्रमाण रहता है ।। ३७२ ।। ( औषधिपुरकी परिधि २७३५६१७ - २१८८७७५ ) × १ = ४३७७४० = ५४७१८ ( 2 ) योजन तमक्षेत्र है । [ गाथा : ३७२-३७५ श्रावण - सहस्सा, इगिसय उणवण्ण जोयणा श्रंसा । सगतीस पुंडरीगिणि- पुरीए बहु-मज्झ पणिषितमं ॥ ३७३ ॥ ५०१४६ । । अर्थ- पुण्डरीकिणी पुरीकी बहुमध्य-प्रणिधिमें तमका प्रमाण अट्ठावन हजार एकसो उनंचास योजन और संतीस भाग अधिक रहता है ।। ३७३|| { पुण्डरीकी नगरीकी परिधि २६०७४९५ तमक्षेत्र है | = २१२५६४* ) × ३=५८१४९ योजन सूर्य के प्रथम पथमें स्थित रहते अभ्यन्तर दीधी में तमक्षेत्रका प्रमाणतेसट्ठि सहस्सा, सत्तरसं जोयणा चउ-कलाओ । पंच-हिदा पढम-प, तम परिही पह-ठिद दिसे || ३७४ || ६३०१७ । ३ । अर्थ -- सूर्य के प्रथम पथमें स्थित होनेपर प्रथम पथमें तमक्षे त्रको परिधि तिरेसठ हजार सत्तरह योजन और चार भाग-प्रमाण होती है ।। ३७४ ।। ( प्रथम पथकी परिधि १५०८० X ६३०१७ योजन । द्वितीय पथमें तम क्ष ेत्र एक्क - कला सहि सहस्साणि, जोयणया एक्कवीस बिदिय-पह तिमिर- खेां श्रादिम मग हिदे सूरे ||३७५ || ६३०५१ । ६ । ·
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy