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________________ गाथा : ३६६-३७१ ] सत्तमो महाहियारो [ ३४१ अर्थ- सूर्य के प्रथम पथको प्राप्त होनेपर अरिष्टा नगरीमें तिमिर क्षेत्र इकतालीस हजार नौ सौ चालीस योजन और पैंतीस कला - प्रमाण रहता है ।। ३६८ ॥ ( अरिष्टानगरी की परिधि २०९७०४१ = १६७६३५) (2) योजन तिमिरक्षेत्र है । - बहत्तर योजन और सत्तरह भाग प्रमाण रहता है ।। ३६६।। बावत्तरिति-सयाणि, पणबाल सहस्स जोयणा श्रंसा । सत्तरस अरिट्ठपुरे, तम खेत्तं पढम पह सूरे ॥३६२॥ ( अरिष्टपुरीकी परिधि २२६६६२ = १९१४ ) x + योजन तिमिरक्षेत्र है । · ४५३७२ । १७ । अर्थ- सूर्यके प्रथम पथ में स्थित होनेपर अरिष्टपुर में तम क्षेत्र पैंतालीस हजार तीन सो ( खड्गा नगरीको परिधि २४१६४८ - १६३१८५ ) X (7) योजन तमक्षेत्र है । तम क्षेत्र है । = - 33५५२७ - H अट्ठत्ताल सहस्सा, ति-सया उणतीस जोयणा श्रंसा । पणुवीसं खग्गाए, बहुमहिम- पणिधि-तम- खेत्तं ॥ ३७० ॥ ४८३२९ | १५ | अर्थ-खड्गा नगरीके बहुमध्यम प्रणिधिभाग में तमक्षेत्र भड़तालीस हजार तीन सौ उनतीस योजन और पच्चीस भाग-प्रमाण रहता है ।। ३७० ।। १८ ८१३०४८४८०० = = ४१९४० एक्कावण्ण-सहस्सा, सत-सया एक्कसट्ठि जोयणया । सत्तंसा तम खेतां, मंजुसपुर मज्झ पणिधोए ।। ३७१ ॥ ४५३७२४७ |७८६६३७= ४५३२६५ ५१७६१ | ४ | अर्थ- मंजूषपुरकी मध्य प्ररिधि में तम क्षेत्र इक्यावन हजार सात सौ इकसठ योजन और सात भाग-प्रमाण रहता है || ३७१ || ( मंजूषापुरकी परिधि २४८८०५१ १०००४४० x १०७००४४० = ५१७६१४० योजन
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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