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तिलोयपण्णत्तो
[ गाथा : ३६५-३६८ सूर्यके प्रथम पथमें रहते मेरु प्रादि परिधियोंमें तिमिर क्षेत्रका प्रमाण
छस्स सहस्सा ति-सया, चउवीस जोयणाणि वोणि कला । मेगिरि · तिमिर • खेत्तं, मादिम - मग्गद्विवे तवणे ॥३६॥
६३२४ ।। अर्थ-सूर्यके प्रादि ( प्रथम ) मार्गमें स्थित होनेपर मेरु पर्वतके ऊपर तिमिरक्षेत्रका प्रमाण छह हजार तीन सौ चौबीस गोजन और दो भाग अधिक है ।।३६५11 { मेह परिधि ११३२ )x=६३२४३ योजन तिमिरक्षेत्र ।
पणतीस-सहस्सा पण-सयाणि बावण्ण-जोयणा अंसा । अटु-हिवा खेमाए, तिमिर-खिदी पढम-पह-ठिद-पयंगे ॥३६६।।
३५५५२११। अर्थ-पतंग (सूर्य) के प्रथम पथ में स्थित होनेपर क्षेमा नगरी में तिमिरक्षेत्र पैतीस हजार पांच सौ बावन योजन और एक योजनके आठवें भाग-प्रमाण रहता है ।।३६६।।
(क्षेमाकी परिधि १७७७६०१=१४३३०८५) ४ -२८४.४१ = ३५५५२१ योजन तिमिरक्षेत्र।
तिय-अटू-णवट्ठ-तिया, अंक-कमे सग-दुगंस चाल-हिदा । खेमपुरी-तम-खेत्तं, दिवायरे पढम • मग्ग - ठिदे ||३६७।।
___३६६८३ । । मर्थ--सूर्यके प्रथम मार्ग स्थित होनेपर क्षेमपुरीमें तम-क्षेत्र तीन, आठ, नो, पाठ और तीन, इन अंकोंके क्रमसे अड़तीस हजार नौ सौ तेरासी योजन और सत्ताईस भाग-प्रमाण रहता है ||३६७।।
(क्षेमपुरीकी परिधि १९४६१८१-१५५ )xt=१४३४*=३८९८३१४ योजन तिमिरक्षेत्र है।
एक्कत्ताल-सहस्सा, णव-सय-चालीस जोयणाणि कला। पणतीस तिमिर-खेत्तं, रिट्ठाए पढम-पह-गद-विणेसे ॥३६॥
४१९४० । । .
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