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गाथा : ३७६-३७८ सती माहियारो
[ ३४३ अर्थ-सूर्य के प्रथम पथमें स्थित होनेपर द्वितीय वीथी में तिमिर-क्षेत्र तिरेसठ हजार इक्कीस योजन और एक कला अधिक रहता है ।। ३७५।। ( द्वितीय वीथीकी परिधि 3140 }x=६३०२१३ योजन ।
तृतीय पथमें तम-क्षेत्रतेसट्ठि-सहस्साणि, चउवीसं जोयणाणि चउ प्रसा। तविय-पह-तिमिर-मूमी, मत्तंडे पढम - मग्म - गवे ॥३७६।
६३०२४ । । । एवं मज्झिम-मगंतं जेवब्वं ।
अर्थ-सूर्यके प्रथम मार्ग में स्थित रहने पर तृतीय पथमें तिमिर क्षेत्र तिरेमठ हजार चौबीस योजन और चार भाग अधिक रहता है ।।३७६॥
(तृतीय पथकी परिधि 18x) =६३०२४३ योजन । इसप्रकार मध्यम मार्ग पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
__ मध्यम पथमें तम-क्षेत्र--- तेसटि-सहस्साणि, ति-सया चालीस जोयणा दु-कला। मज्झिम-पह-तिमिर-खिदी, तिक्ष्वकरे पढम-मम्ग-ठिवे ॥३७७।।
६३३४० ।। एवं दुचरिम-परियंत णेदव्यं ।
प्रर्थ-तीवकर ( सूर्य के प्रथम पथमें स्थित होनेपर मध्यम पथमें तिमिर-क्षेत्र तिरेसठ हजार तीन सौ चालीस योजन और दो कला अधिक रहता है ।।३७७।।
( मध्यम पथको परिधि-१०२ )x=६३३४०१ योजन। इसप्रकार द्विचरम मार्ग पर्यन्त ले जाना चाहिए।
बाह्य पथमें तम-क्षेत्र-- तेसट्रि-सहस्साणि, छुस्सय-बास दिल-जोयणाणि कला । चत्तारो बहिमम्गे, तम - खेत्तं पढम-पह-ठिवे तवणे ॥३७॥
६३६६२ ।।