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________________ ३३६ ] तिलोयपण्णत्तो [ गाथा : ३५२-३५४ अर्थ-सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर अरिष्टपुरमें तापक्षेत्र पैतालीस हजार तीन सौ बहत्तर योजन और सत्तरह भाग प्रमाण रहता है ।।३५१।।। (अरिष्टपुरी की परिधि २२६८६२६ =14188 )x=10४६६ = ४५३७२१ योजन तापक्षेत्र है। अठ्ठत्ताल-सहस्सा, ति-सया उणतोस जोयणा प्रसा। पणवीसा खग्गोवरि, तावो बाहिर-पह-ट्टिदक्कम्मि ॥३५२॥ ४८३२६ । ५। अर्थ-सूर्यके बाह्यपथमें स्थित होनेपर खड्गानगरीमें ताप-क्षेत्र अड़तालीस हजार तीन सौ उनतीस योजन और पच्चीस भाग प्रमाण है ॥३५२।। (खड्गानगरी की परिधि २४१६४८८=18381८५)xt=३८६१३-४८३२९ योजन तापक्षेत्र है। एक्कावण-साहस्सा, सत्त-सया एक्कसठि जोयणया । सत्तंसा बाहिर - पह - ठिन • सूरे मंजुसे तावो ॥३५३॥ ५१७६१। । अर्ष-सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर मंजूषा नगरीमें तापक्षेत्र इक्यावन हजार सात सौ इकसठ योजन और सात भाग प्रमाण रहता है ।।३५३।। ( मंजूषापुरकी परिधि २५८८०५५ - १०५४७ )xt Payxx = ५१७६११ योजन तापक्षेत्र है। बउवण्ण-सहस्सा, सग-सयाणि अठरस जोयणा प्रसा। पण्णरस प्रोसहिपुरे, तावो बाहिर-पह-ठिबक्कम्मि ॥३५४॥ ५४७१८ । । अर्म--सूर्यके बाह्य पथमें स्थित होनेपर औषधिपुरमें तापक्षेत्र चौवन हजार सात सौ अठारह योजन और पन्द्रह भाग प्रमाण रहता है ।।३५४।। ( औषधिपुरकी परिधि २७३५९१३ - ११४34)x x3gpx6-५४७१६६ योजन तापक्षेत्र है।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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