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सत्तमो महाहियारो
पंचतीस - सहस्सा, पण-सय बावण्ण जोयणा प्रसा ।
प्रट्ठ-हिदा मोवर, तावो बाहिर पह-विवकम्मि ।। ३४८ ||
३५५५२ । । ।
अर्थ- सूर्य बाह्य पथमें स्थित रहनेपर क्षेमा नगरीके ऊपर ताप-क्षेत्र पैंतीस हजार पाँच सौ बावन योजन और योजनके आठवें भाग प्रमाण रहता है ||३४८।।
गाथा | ३४८ - ३५१ ]
( क्षेमानगरी की परिधि १७७७६०१ = १४९३०८५ ] x =८४१७ == ३५५५२६ योजन
तापक्षेत्र है ।
तिय-प्रणव-तिया, अंक-कमे सत्त दोणि असा य ।
चाल विहसा तायो, खेमपुरी बाहि-पह द्विदक्कम्म ||३४६ ॥
-
३८६८३ । ३ ।
अयं -सूर्य के बाह्य पथ में स्थित होनेपर क्षेमपुरी में तापक्षेत्र तीन, आठ, नौ, आठ और तीन, इन अंकों क्रमसे अड़तीस हजार तो सो तेरासी योजन और चालीस से विभक्त सत्ताईस भाग प्रमाण रहता है ||३४९।।
{ क्षेमपुरीकी परिधि ११४६१८३ = १५५१४० ) x = १५७३४० = ३८६८३३ योजन तापक्षेत्र है ।
एक्कत्ताल सहस्सा णव सय चालीस जोयणा भागा ।
पणतीसं रिट्ठाए, 'तायो बाहिर पह-ट्ठिदवकम्मि ।।३५० ।।
[ ३३५
४१९४० । ३ ।
अर्थ - सूर्य के बाह्यपथ में स्थित होनेपर अरिष्टा नगरी में तापक्षेत्र इकतालीस हजार नौ सौ चालीस योजन और पैंतीस भाग प्रमाण रहता है ।। ३५० ।। ( श्ररिष्टा नगरीकी परिधि २०६७०४६ योजन तापक्षेत्र है।
१६७2534 ) X = १७५५२०४१९४०३
=
पंचत्ताल- सहस्सा बाहत्तरि ति सय जोयणा सा । सत्तरस रिट्ठपुरे, ताचो बाहिर पह-विक्कम्मि ।। ३५१ ॥
४५३७२ । । ।
१. द. ज. वाहो ।