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________________ ३३२ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ३३९-३४२ सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते द्वितीय वीथी का ताप-क्षेत्रचउ-णउदि-सहस्सा इगि-सयं च सगसीदि जोया अंसा । बाहत्तरि सत्त-सया, तदिय-पहक्कम्मि बिविय-पह-तावो ॥३३६॥ ९४१८७ । । अर्थ-( सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित रहने पर द्वितीय वीथीमें ताप-क्षेत्र चौरानबै हजार एक सौ सतासी योजन और सात सौ बहत्तर भाग प्रमाण है ॥३३९।। द्वितीय पथकी परिधि ३१५१०६ यो० ४ ॐ यो०८९४१८७१११ यो० ताप क्षेत्र है । सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते तृतीय वीथी का ताप-क्षेत्र-- चउणउदि-सहस्सा इगि-सयं च बाणउदि जोयणा अंसा। सोलस-सया तिरधिया, तविय- पकम्मि तबिय-पह-तावो ॥३४०॥ ९४१९२ । 1881 प्रथ-(सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होनेपर तृतीय वीथीमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण पौरान हजार एक सौ बानबै योजन और सोलह सौ तीन भाग अधिक अर्थात् ( ९४१९२१६४ योजन ) है ॥३४०॥ सूर्य के तृतीय पथमें स्थित रहते चतुर्थ वीथीका ताप-क्षेत्रघउ-उदि-सहस्सा इगि-सयं च अडगउदि जोयणा अंसा। तेसठ्ठी दोणि सया, तविय-पहक्कम्मि तुरिम-पह-तायो ।।३४१॥ ९४१९८ । ४.! एवं मरिझम-पह-पाइल्ल-परिहि-परियतं णेदव्यं । अर्थ-(सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होनेपर चतुर्थ वीथीमें तापक्षेत्र चौरानबै हजार एक सौ अट्ठान योजन और दो सौ तिरेसठ भाग ( ६४१६८ योजन ) प्रमाण है ।।३४१।। इसप्रकार मध्यम पथकी आदि ( प्रथम ) परिधि पर्यन्त ले जाना चाहिए । सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते मध्यम पथका ताप-क्षेत्रचउपउवि सहस्सा छस्सयाणि घउसटि जोयणा प्रसा। चउहतरि अट्ठ-सया, तदिय-पहक्कम्मि मझ-पह-तावो ॥३४२॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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