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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३३९-३४२ सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते द्वितीय वीथी का ताप-क्षेत्रचउ-णउदि-सहस्सा इगि-सयं च सगसीदि जोया अंसा । बाहत्तरि सत्त-सया, तदिय-पहक्कम्मि बिविय-पह-तावो ॥३३६॥
९४१८७ । । अर्थ-( सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित रहने पर द्वितीय वीथीमें ताप-क्षेत्र चौरानबै हजार एक सौ सतासी योजन और सात सौ बहत्तर भाग प्रमाण है ॥३३९।। द्वितीय पथकी परिधि ३१५१०६ यो० ४ ॐ यो०८९४१८७१११ यो० ताप क्षेत्र है ।
सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते तृतीय वीथी का ताप-क्षेत्र-- चउणउदि-सहस्सा इगि-सयं च बाणउदि जोयणा अंसा। सोलस-सया तिरधिया, तविय-
पकम्मि तबिय-पह-तावो ॥३४०॥
९४१९२ । 1881 प्रथ-(सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होनेपर तृतीय वीथीमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण पौरान हजार एक सौ बानबै योजन और सोलह सौ तीन भाग अधिक अर्थात् ( ९४१९२१६४ योजन ) है ॥३४०॥
सूर्य के तृतीय पथमें स्थित रहते चतुर्थ वीथीका ताप-क्षेत्रघउ-उदि-सहस्सा इगि-सयं च अडगउदि जोयणा अंसा। तेसठ्ठी दोणि सया, तविय-पहक्कम्मि तुरिम-पह-तायो ।।३४१॥
९४१९८ । ४.! एवं मरिझम-पह-पाइल्ल-परिहि-परियतं णेदव्यं ।
अर्थ-(सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होनेपर चतुर्थ वीथीमें तापक्षेत्र चौरानबै हजार एक सौ अट्ठान योजन और दो सौ तिरेसठ भाग ( ६४१६८ योजन ) प्रमाण है ।।३४१।।
इसप्रकार मध्यम पथकी आदि ( प्रथम ) परिधि पर्यन्त ले जाना चाहिए ।
सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते मध्यम पथका ताप-क्षेत्रचउपउवि सहस्सा छस्सयाणि घउसटि जोयणा प्रसा। चउहतरि अट्ठ-सया, तदिय-पहक्कम्मि मझ-पह-तावो ॥३४२॥