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गाथा : ३३६-३३८ ] सत्तमो महाहियारो
[ ३३१ ( मंजूषपुरको परिधि २५८८०५६ = २४४४४७ ) x = ०१११.३ ७७३५८111 योजन ताप-क्षेत्र है ।
अद्व-सग-सत्त-एकका, अट्ठक-कमेण पंच-दुग-एक्का। अट्ट य अंसा तावो, तबिय-पहक्कम्मि प्रोसहपुरोए ॥३३६॥
८१७७८ । १०। अर्थ-(सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होने पर औषधिपुरोमें तापक्षेत्रका प्रमाण आठ, सात, सात, एक और आठ, इन अंकोंके क्रमसे इक्यासी हजार सात सौ अठहत्तर योजन और पाठ हजार एक सौ पच्चीस भाग है ।।३३६।।
(औषधिपुरीकी परिधि २७३५९१ = २१४१3५) x =- - ८१७७८॥३६ यो तापक्षेत्र ।
सत्त-शभ-पवय-छक्का, अट्ठक कमेण णव-सग? क्का । अंसा होवि हु तावो, तविय-पहक्कम्मि पुडरिगिणिए ॥३३७॥
८६९०७
I I प्रर्ष-(सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होनेपर पुंडरी किणी नगरीमें तापक्षेत्र सात, शून्य, नो, छह और आठ, इन अंकोंके क्रमसे छयासी हजार नौ सौ सात योजन और एक हजार पाठ सौ उन्यासी माग है ।।३३७॥
(पुण्डरीकिणीपुरीकी परिधि २६०७४६१=२३१५६४) x - RAY= १६६०७४ योजन तापक्षेत्र ।
सूर्यके तृतीय पथमें स्थित रहते अभ्यन्तर वीथी का तापक्षेत्रदुग-अटु-एक्क-चउ-णव, अंक-कमे ति-दुग-छक्क अंसा य । णभ-तिय-अठेक्क-हिवा, तविय-पहक्कम्मि पढ़म-पह-ताचो ॥३३८।।
९४१८२ । । अर्ष-( सूर्य के ) तृतीय पथमें स्थित होनेपर प्रथम वीथी में ताप-क्षेत्र दो, आठ, एक, चार और नौ, इन अंकोंके क्रमसे चौरानब हजार एक सौ बयासी योजन और एक हजार आठ सौ तीस से भाजित छह सौ तेईस भाग प्रमाण है ।।३३८॥
( अभ्यन्तर वीथी को परिधि ३१५०८६ ) x = =९४१८२ योजन ताप-क्षेत्र ।