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________________ तिलोयपणती [ गाथा : ३३३-३३५ अर्थ-( सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित रहते अरिष्टा नगरीमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण दो, पाठ, छह, दो और छह, इन अंकोंके क्रमसे बासठ हजार छह सौ बयालीस योजन और एक हजार आठ सौ पैंसठ भाग है ॥३३२॥ (अरिष्टाको परिधि २०६७०४३ - १६५१३३५) x = १८१४१३६ = ६२६८२ यो० तापक्षेत्र । गयणेक्क-अट्ठ-सत्ता, छक्क अंक-क्कमेण जोयणया। अंसा णव-पण-दु-ख-इगि, तक्यि-पहपकम्मि रिद्वपुरे ॥३३३॥ ६७८१० । ११ । अर्थ-( सूर्यके ) तृतीय पथमें स्थित होने पर अरिष्टपुरमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण शून्य, एक, आठ, सात और छह, इन अंकोंके क्रमसे सड़सठ हजार आठ सौ दस योजन और दस हजार दो सौ उनसठ भाग है ।।३३३॥ (अरिष्टपुरी की परिधि २२६८६२६ = ४१४८७ ) x = FERTER =६७८१०१४0 योजन तापक्षेत्र। भ-तिय-दुग-दुग-ससा, अंक-कमे जोयणाणि अंसा य । पण-णव-णव-घउमेत्ता, तावो खग्गाए तधिय-पह-तवणे ॥३३४।। ७२२३० १ . अर्थ-( सूर्य के ) तृतीय मार्ग में स्थित रहने पर खड्गापुरीमें ताप-क्षेत्रका प्रमाण शून्य, तीन, दो, दो और सात इन अंकोंके क्रमसे बहत्तर हजार दो सौ तीस योजन और चार हजार नौ सौ पंचानब भाग है ।।३३४।। (खड्गपुरीकी परिधि २४१६४८१ = 182८५) x ५४५ -- Hest = ७२२३० योजन ताप-क्षेत्रका प्रमाण है। अट्ठ-परण-तिदय-सत्ता, सत्तंक-कमे णवट-ति-ति-एक्का। होति कलाओ तावो, तदिय-पहक्कम्मि मंजुसपुरोए ॥३३५॥ ७७३५८ । १३ । प्रपं-(सूर्यके ) तृतीय मागंमें स्थित होनेपर मंजूषापुरीमें तापक्षेत्रका प्रमाण आठ, पाँच, तोन, सात और सात इन अंकोंके क्रमसे सतत्तर हजार तीन सौ अट्ठावन योजन और तेरह हजार तीन सौ नवासी कला अधिक है ॥३३५।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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